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________________ * श्री लँबेचूसमाजका इतिहास * ३१७ की श्रीऋषभदेवकी श्याम वर्ण मूर्ति है, पद्मासनपलाके नीचे बैलका चिह्न है। शृङ्गाररहित निरावरण । ___दर्शनके समय पलाथी मारे, हाथ पे हाथ धरे, नाशाग्र दृष्टि, सिरपर चाँदीका बड़ा छत्र फिरता ऐसे दर्शन हमें भिंडके लाला वैद्यजीने मुंदड़ीमें कराये थे। अब भी हमारे गुहराई मुहल्लामें महादेवकी तिवरियामें एक साधु क्षत्रिय रहते हैं, वे भी दिखाते हैं तथा एक हिन्द वैष्णव अग्रवालकी पुत्री जो जैन अग्रवालके ब्याही लक्ष्मीबाई जो आजकल कोडरमा रहती है। वह भी कहती है कि मूर्ति जिनमूर्ति ऋषभ भगवान् की है। जिनको सब बद्रीनारायण कर पूजते हैं और भी भिंडके देवदत्त, अग्निहोत्र कान्यकुब्ज ब्राह्मण बद्रीनारायण गये थे, वे कहते थे और कई महेश्वरियोंसे पूछा सब जैन मूर्ति कहते हैं। उनके शिर ऊपर जलकी धार पड़ती है और गंगोत्रीमें आती है। गंगाका जल प्रवाहमें आती है, गंगाका जल बहुत माना जाता है। वर्षों रखने पर भी कीड़े नहीं पड़ते । श्रीऋषभदेव भगवान्की मूर्ति पर गंगाकी धारका पड़ना इसका जिकर कथन जैनपुराणमें है। इस हेतु श्रीकृष्ण महाराजने
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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