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________________ २८४ * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * श्रीनेमिनाथका अपने जन्म भया, इन्द्रादिक देवोके आसन कम्पायमान भये, जिसका प्रभुत्व वाल्यावस्था ही विष तीन लोकमें प्रगट है। जिसकी सेवा विपं सकल लोकपाल सदा सावधान तिसके कुलको ऐसा कौनसा मनुष्य जो विघ्न करै, जिस कुलमें तीर्थङ्कर देव प्रकट होय वह कुल अपराजित है, किसी कर जीता न जाय ऐसा कौन है, जो विघ्न करै अग्नि को हाथकरि स्पर्श अग्नि तीव्र ज्वाला कर युक्त है, तैसे तीर्थङ्कर बलदेव वासुदेवके सम्मुख जीति की इच्छा कर कौन आवै, यह जरासिंध प्रति नारायण है । अर याक नाश करनेवाले अपने कुलमें ये बलभद्र नारायण उपजे हैं। इससे जबतक कृष्णरूप अग्नि विष वह प्रति नारायण रूप पतंग अपने पक्षसहित आपही आयकर भस्म न होय तबतक कालक्षेप करना थोग्य है क्योंकि राजाके पड़गुण कहै, संधि विग्रह २ यान ३ द्वैधीभाव ४ आसन ५ आश्रय ६ ( संधि ) अपनेसे शत्रुको प्रबल जान भद्र परिणामी जान संधि करना, मेल करना, ( विग्रह ) शत्रको अपनेको कमजोर समझ और शत्रको दुष्ट परिणामी समझ युद्ध करके जय प्राप्त करना (यान)
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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