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________________ * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * २५७ सवैया ३१ लाखनि और मुखे में पचोलहे लो इन लाखनि मांझ लजीले ॥ सींचि सुधा बसुधा सनमान सुबोलत बोल अमोल रसीले ॥ सुखदायक लायक भाइ पके सब लाय कहैं भुजभार चड़ीले ॥ पुरुषारथ को सारि वाहन केशव शाह निमें शिरदार रगीले ।। ५३ ॥ जो राजघरवांनी जो ताहि बहुरिजानी जो पांच में पांचोलहे पुनीत नर नाउ है ॥ तेही सार वाहनके तेरे ई देखते मिटत दुख दाउ है ॥ कुआ बागवाड़ी देवालय कीने देवनिके श्रावकनि सरा है श्रावक महा वाउ है ॥ कीनो तिलक सब गोटिनि मिलि गोटे सरा हैं जगत जैनी महासाहु है ॥ ५४॥ ___ प्रथम खरचि लच्छी शाहनि में राखी कांनि सरमीले लालसेनि धराधरी दान की॥ भरत सो भाई तो बहुरण मल की निर्मल पूजा रची वेदी बर्द्धमान की ॥ जिहि करी ताकी धरी रही वाही ठोर करी है पचोलहिनि अहाने कहान की। कीरति लहलहानी सींची सोने के पानी करके प्रतिष्ठा मेढि राखी लँबेचुहान की ॥ ५५ ॥
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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