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________________ * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * २५५ साता || चारहुचक्र सराहत हैं लखि तीन मणि सगरो घर दाता ॥४७॥ कवित्त पिलखनिया गोत्रको सवैया ३१ मनीरामवंश प्रेमराजनन्द महासिंघ खड्गसेनजूक गुण गावत गुनिआ महासिंघनन्द कुलचन्द दानी बालचन्द दिन प्रतिक मोजे विलोकनको चुनिया || खड्सेननन्दसी उमेद राइ चैनसुख जैनकी सुधाईकी सराहकरे सबदुनिया || कहत भमानी जशवंत नगर शुभ थान दान अरु करनीको दिलेल पिलखनिया ॥ ४८ ॥ कवित्त तिहैया गोत्रको छप्पय बड़े अमीर उमराउ राउराजा सन्माने ।। नृपति खान खुम्मान शाहि दरवार बखाने ॥ देततुरंग मगाइ हाल ततक्षणे गुणिनिको ॥ कविको विदगुण पढ़त लछिवहुफल तिसवनको इन्द्रजीतनन्द लऊराइ कहि पीताम्बर सुनियत सुभट्टनर ॥ तिहैय्यावंशभागमल्ल के सुतेरो सुजश चहुं चक्कर ||४६ ||
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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