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________________ २० * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * पहिले संवत् १६७५ में जो लँवेच संक्षिप्त इतिहासमें छपाया था। उस समय श्री रामपाल यती बने थे सम्बत् १९८१ में वे नहीं रहे वे बीमार थे रात्रिको श्री बटेश्वरके जिन मन्दिरको बाहिरी जैन धर्मशालाके दरवाजे के ऊपर दालानमें बदमाशों द्वारा फाँसी लगाकर मार डालेगये। सरकारी बहुत इनकारी भई पता नहीं लगा। उन्हीं दिनोंसे वहाँसे सूरीपुर १ मील दूरी पर है उसपर श्वेताम्बर लोग आक्रमण कर खेवट जो रामपाल दिगम्बर यतोके नामसे था उसपर कबजा करनेके लिये वटेश्वरके पटवारीको अपने फेवरमें बनाकर ग्वेवट पर अपना नाम चढ़वाना चाहते थे सरकारी आदमी नाम चढ़वाने के लिये इतला करनेके लिये श्वेताम्बरों के धोखे वटेश्वर दि० जैन मन्दिर पर सदैव की भाँति चला आया और उस समय रामपाल यती दिगम्बर भट्टारकके स्थान पर गवालियरसे हरप्रसाद यति आये हुये थे वे उस समय उस बृटिश राज्यके सरकारी आदमीके साथ गये और इन्होंने कागद पढ़ा तब इन्होंने कहा कि यह खेवट तो दिगम्बरियों के नाम है श्वेताम्बर कौन होते हैं तब उसने जवाब दिया कि कागजात सब आगरा गये वहाँ
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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