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________________ * श्री लँबेचू समाजका इतिहास* कवित्त कानून गोद्गोत्रको सवैया ३१ सुवनिके आदर अदव फोजदारिन के बड़े भुअपालनमें नीको तुअ नाम है || महासिंघजके कुले कलशा चढाये रहे जादोराह वंश सदा धर्म ही को धाम है । चुन्नीलाल नन्द तुम करो आनन्द सदा कहत गुलाब सुजश लेत आठो जाम है || मुलेक मुलिककुल खलक में सोरोजही दानको दिलेल कानगोह आशारामा है ॥ ४३ ॥ २५३ सवैया ३१ यम संयम के तपे पूरन प्रभाकेन जाके विप्र अरचा चरचाको चित्त चाउ है || नन्द भगवन्तको अजानबाहुमे रमाने || मेरे जान ऐसो कोउ राजा है केराउ है | धरमको करिआ रमेश कमलके वंश पार करिवेको मेरी सरम नाउ है || दुसमन दारिदको कहा डर ताकों जाको कानूगो महीप महासिंह महाबाहु है ||४४ || सवैया ३१ सूवनिके आदर अदव फोजदारनके बड़े भूपालनमें नीको जाको नाम है ।। खान ओ खुमान सुलतान निर्के
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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