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________________ * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * २५१ शोभासभा सबको सुखदाये हैं। परमानन्दवंश खर्गसेनके भमानीदास करि करतूतें कुलकलशचढाये हैं। बड़ी बड़ी करनी बढ़ाई सिरदारी जीते लौलाल यात जेतपुरिया ये कहाये हैं ॥३८॥ फिर गवत गोत्रको कवित्त आँगे गाऊरावतने बड़े बड़े गढ़ जीते जीते जोरजज्ञ कीने दुर्जन निःशक हैं । फेरि हंतिकति पति भाइप तिलककीनो सजन सिहाने छाती सूमनि धसक है । ताही कुल परसादी गान मान दान जीतो खडगसेननन्द भयो तोहीमें इसक्क है। मन सुखराइ साहिब सपूत लऊराइ कहैं अरराज रोतईकी तोही में ठसक है ॥३६॥ सोनी गोत्रका कवित्त छप्पय प्रथमही सोनी कर्णशाह सुलताननि मानो । तिह घर हरष भयो देश देशनिमें जानो। जंजंगिनिका जीति वार भयो लोकर्माहि उजियारो, मंगन आवत पार रोर तिन को अतिभारो। जगदीश वंश लऊराइ कहैं जेदेल दिलेल कंचन वरस । टीकाराम जदुवंशमें राज पेमराज सोनीसरस ॥३६॥
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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