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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास * २३६ ___ जोरजशी पुरुष प्रतापी प्रसिद्ध सदा दे दै दान दीननके दारिदको हरिया। कुलको कलश कुलदीपक कुल माहिं दिपै जिनके सुयश चारौ चक्रनिमें भरिया। रधुनाथशाह अंश राजाशाह नन्द कहैं लऊराइ लच्छि सुकृतही धरिया । चारिहू दिशानि विदिशानिमें सिफत यही घोरनि को दानी रमापति है परिया।। ८ ।।
राजमल्लवंश भले अंशरघुनाथजूके धनी धरमदास भमानी सरस्वतिक । गंगाविष्णुभपरभलाई भरो भागजाको राधाकृष्ण सुजश लिवैया भले अतिकै । आनन्दको कन्दमुखुशाल चन्द यो गोपाललाल । सबै सखदेत सव शुभमतिक कहत गुलाब जिन्हें खलकमरा है। करनीको सर सपूत नाती दयाराम रमापतिके ॥६॥
( सवैया २३ सा) प्रथमहि हेमराज परकाज करें जे पूजा पुण्यकं करिया है । वृन्दावन अरु प्राणनाथ जदुवंशकी उपज जु धरिया है। हंसराजक नन्द सदा कवितानिको दान जु करिया है। लऊराय कहै चिरञ्जीवो सदासो देखे जोर परियाहै ॥१०॥