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________________ * लँबेचू समाज का इतिहास * २२६ हुए। उनकी धर्मपत्नी 'सल्लक्षणा' बड़ी रूपवती, धर्मवती और गुणवती थीं। उनके दो पुत्र हुए 'हरिदेव' और 'द्विजराज'। पूर्व कथनानुसार 'कण्हड' की प्रार्थना से ही कविने प्रस्तुत ग्रन्थ की रचना की । यह ग्रन्थ उन्हीं को समर्पित किया गया है। प्रत्येक सन्धि की पुष्पिका में कवि ने इसे 'कण्हाइच णामांकिय' अर्थात कृष्णादित्यनामाङ्कित' कहा है, जिससे यह भी ज्ञात होता है कि 'कण्ह' या 'कण्हड' का पूरा और शुद्ध नाम 'कृष्णादित्य था। उक्त विवरण पर से जमुना - तटवर्ती 'चंदवाड' नगर के चौहान राजवंश व तत्स्थानीय एक लंबेचू कूल का परम्परागत सम्बन्ध इस प्रकार स्पष्ट होता हैचौहान राजवंश लँबेचू साहुवंशसे साहवंश चोहानवंश ही था भारतपाल ... हल्लण अभयपाल ... अमृतपाल जाहड़ ) ... सोदु साह श्रीबल्लाल ) । । रत्नपाल । . कृष्णादित्य-7 सुलक्षण देवी आहवमल्ल-7 ईसरदे शिवदेव (कण्हड) वि० सं० १३१३) हरिदव द्विजराज
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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