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________________ * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * परिशिष्ट ३ संध्यंत पुष्पिकायें २१६ *** १ इय अणुवय रयण- पईव - सत्थे पर मोवास पाण तेवरण्ण-किरिया - पयडण-पसत्थे सुगुण सिरि- साहुल- सुबलक्खण- विरइए भव्यसिरि- कण्हाइच्च णामं किए दंसण गुण परिभाववण्णणो णाम पडमो परिच्छेउ सम्मत्तो ॥ १ ॥ २ इय अणुवय- रयण-पव-सत्ये परम-सावयार - विहि विहाण विरयण - समत्थे सगुण-सिरि-माहुल- सुव-लक्खण विरइए महामंति- कण्हाइच्च णामंकिए णिस्संक-गुण-पढमकहा- पडणो णाम दुइउ परिच्छेउ सम्मत्तो ||२|| ३ इय अणुवय रयण- पईव-सत्थे महासावयाण सुपसण्ण परम-तेवण्ण किरिय-पयडण समत्थे सगुण- साहुल-सुअ-सखणविरइए भव्व. सिरि- कण्हाइच - णामं किए पंच कहंतर- सम्मत्तगुण- वित्थरणो णाम तईओ परिच्छेउ सम्मत्ता ||३|| ४ इय अणुवय- रयण- पईव सत्थे मह सावयाण सुपसण्ण परम तेवण्ण किरिय-पयडण - समत्थे सगुण-सिरिसाहुलसुत्र लक्खन - विरहए भव्व- सिरि- कण्हाइच्च णामंकिए
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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