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________________ * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * १९७ जो साहु सोढु तहिं पुर-पहाणु जण-मण-पोसणु गुण-मणि-णिहाण। तहो पदमु पुत्तु सिरि रयणवालु बीयउ कण्हडु अद्धिंदु - भालु । सो सुपसिद्धउ मल्हा - तणुउ तस्साणुमणा जिउ सुद्धरूउ । (१) उद्धरिय जिणालय - धम्म - भारु जिण - सासण-परिणय-चरिय-चारु। गंधोवरण दिणे दिणे पिवत्तु मिच्छत्त - वसण - वासण - विरत्तु । सोने में अच्छी तरह जड़ा हुआ चिन्तामणि यदि हाथ चढ़ जाय तो कौन उसे छोड़ देगा ? घर के आंगन में यदि कल्पवृक्ष उत्पन्न हो जाय तो उस सुख देनेवाले वृक्ष को कौन जल से नहीं सीचेगा ? स्वयमेव घर आई हुई सुख की सेना को उत्पन्न करनेवाली कामधेनु को कौन छोड़ देगा ? अपने तेज से भापति (सूर्य) को भी जीतनेवाले चारण मुनि यदि आकाश से आ जाये तो उन्हें कौन नमस्कार नहीं करेगा ? जीवनदान देनेवाला भव्य पीयूषपिण्ड हाथ आ जाय तो उसे कौन छोड़ेगा ? इसी प्रकार उत्तम कवि महाबीजाक्षर रूपी गुणों के मणियाँ
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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