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________________ * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * छण-ससि-परिसर - संपुण्ण - वयण मुक्क-मल कमल दल-सरल-णयण । आसा - सिंधुर - गई - गमण-लील बंदियण - मणासा - दाण-सील । परिवार - भारधुर - धरण - सत्त मोयइं अंतरदल - ललिय - गत्त । छइंसण - चित्तासा . विसाम ___ चउ-सायरंत - विक्खाय - णाम । अहमछ - राय - पय - भत्ति जुत्त अवगमिय - णिहिल विष्णाण-सुत्त। णिय - णंदणाहं चिंतामणीव णिय - धवलग्गिह - सरहंसिणीव । से युद्ध करने में वे मल्ल हैं, उन्होंने हम्मीर वीर के मनकी शल्य को नष्ट किया है। चौहान-वंशरूपी कमल के वे सूर्य हैं, जिनके भुजबल का प्रमाण जाना नहीं जाता। वे चौरासी खण्ड के-चौरासी प्रामों के आधिपत्य से चौरासी गाँउ शासनकला के भण्डार थे और छत्तीस आयुध चलाने में कुशल थे। साधनों ( अस्त्र-शस्त्रादि ) के समुद्र अर बहुत ऋद्धि से समृद्ध वे शत्रुराजा-रूपी वृषभों के शंकर हैं, अथवा विषों को पी जानेवाले
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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