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________________ १६८ * लँबेचू समाजका इतिहास * पार्श्वनाथ दिगम्बर जिनमूर्ति है पास ही कुण्ड है जिसका नाम कलिकुण्ड है। इन्हींकी पूजा कलिकुण्ड पार्श्वनाथकी प्रसिद्ध है । प्राकृत संस्कृत मिश्रित है, मन्त्र यन्त्र युक्त है, आजकल वह अजैन पण्डाओंके अधीनमें सुनते हैं। ज्ञानोदय मासिक पत्रमें इसीके सम्बन्धसे विन्ध्यभूपतिका उल्लेख है ऐसा प्रतीत होता है। आशाधरजी लिखते हैं :इत्युपश्लोकितो विद्वद्विल्हणे न कवीशिना श्रीविन्ध्यभूपति महासांधिविग्रहिकेणयः । श्रीमदर्जनभूपाल राज्ये श्रावकसंकुले जिन धमो दयार्थ यो नलकच्छपुरेऽवसत् । आशय इस प्रतिष्ठापाठकी राजा विन्ध्यभपतिके ( महा सांधिविग्रहिकेण ) बड़े भारी सन्धि और विग्रह ( युद्ध ) करानेमें चतुर अर्थात् राजालोगोंके यहाँ जो शूर (क्षत्रिय) राजाओंमें आपसमें ( सन्धि ) मेल मित्रता और विग्रह युद्ध करानेमें चतुर हो उसको ( सांधिविग्रहिक ) कहते हैं। उन सांधिविग्रहिक विल्हण कविने अर्जुन भूपालकी राज्यमें इस प्रतिष्ठापाठकी प्रशंसा की है उनकी राजधानीमें जो बहुत
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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