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________________ * श्री लंबेचू समाज का इतिहास. १५६ सोर ग्वालियर जिले में ब्याहा था और आघाटपुर का अधिपति बना। इतिहास पेज ४५१ पर उन कीर्तृ का पौत्र उदयसिंह की कन्या जैत्रसिंह को ब्याही थी। जैत्रसिंह उदयपुरके राणा वंशमें थे और ५१० पेजमें राजपुताने इति० में लिखा है। जैसे इस समय मेवाड़ के महाराणाओं के सबसे निकट के कुटुम्बी बागोर करजाली और शिवरती वाले महाराज या बाबा कहलाते हैं, वैसे ही उस समय केवल मेवाड़ के ही नहीं किन्तु कई एक अन्य पड़ोसी राज्यों में 'राजा' निकट के कुटुम्बी ( छोटी शाखा वाले ) भी राणा कहलाते थे। ऐसे ही गुजरात के सोलङ्की शासक राजा और उनकी छोटी शाखावाले बघेले राणा कहलाते रहे तथा आबू के परमार राजा रावल और उनके निकट के कुटुम्बी जिनके वंश में दातावाले हैं राणा कहलाये और राहप को कुष्ठ रोग हो गया था। उसको सांडे राव के यती जैनयती ( भट्टारक ) ने अच्छा किया। ___ जब से जैन श्रद्धा हो गयी । उनके कुल परम्परा में नरपति ( हरसू नरसू ) दिनकर (दिनकर्ण) ( बबरू हरम् ) जसकणे ( जशः करण जसकरण ) नागपाल पूर्णपाल (पुण्य
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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