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________________ * श्री लँबेचू समाज का इतिहास * १४३ देशीय गण। देव १, दत्त २, नाग ३, तुङ्ग ४, ये ४ शाखा या उपाधि ४ । चौथा सिहंसंघ कालगण नंदी तटगच्छ सिंह १ कुजर २ आस्रब ३ सागर ४, ये ४ शाखायें या उपाधियाँ। श्री वि० सम्बत् २६ में श्रीगुप्तिगुप्त भये । जाति के पमार विक्रमेय के नाती (पोता ) ताने ५२ पोदना पुर में सहस्र परवार थापे । [ इन गुप्तिगुप्त के साथ २ कथन में जिन सेनादि कह दिये परन्तु सम्बत् ५२ गुप्ति गुप्त का ही समझना अन्य का नहीं ] श्री जिन सेन ने खंडेला में खंडेलवाल थापे वघेरा में श्री लोहाचार्य ने वघर वाल थापे । श्रीमान्तुङ्ग ने बागढ़ में वागड़िया थापे और ओसा नगरी में स्थूलभद्र ने ओसवाल थापे । जैसलमेर में जैसवाल थापे। पुरपट्टन में पोरवाड़ थापे । हेमाचार्ग ने पल्लीवाल थापे। मेदपाट में मेवाड़ा हुआ । सम्बत् ४०में जिनचद्रं हुवा यहाँ ८४ गच्छस्वेताम्बर हुआ । संवत् ४० में लोका हुवा सम्बत् ६०० के। सम्बत् १६८३ में तेरापन्थ चला शहर आगेर से। ताको लिखे हैं फिर कोमा में चला फेर आमेर में नरेन्द्र कीर्ति भट्टारक के वखतमें चला, फेर सांगानेर में अमरचन्द्र नासाने चलाया सं० १७०० से गुमान पंथी
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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