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विमाय विकाय विशब्द विशोभ । अनाकुल केवल सर्व विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्ध-समूह ।।
पत्ता असम - समयसारं चारु - चैतन्य - चिन्हें पर - परिणति - मुक्तं पद्मनंदीन्द्र - वन्द्यम् । निखिल - गुण - निकेत सिद्धचक्रं विशुद्ध स्मरति नमति यो वा स्तौति सोऽभ्येति मुक्तिम् ।। ॐ ह्रीं सिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने महायं निर्वपा०
समुच्चय चौवीसी पूजा
वषभ अजित सम्भव अभिनन्दन,
सुमति पदम सुपासजिनराय । चंद पुहुप शीतल श्रेयांस नमि,
वासुपूज्य पूजितसुरराय ॥ विमल अनन्त धर्म जस उज्ज्वल,
शांति कुंथु अर मल्लि मनाय । मुनिसुव्रत नमि नेमि पार्श्वप्रभु,
वर्द्धमान पद पुष्प चढ़ाय ॥