________________
स्वयमेव तथा तुम कुशल देत । पीवत पियूष ज्यों रोग जाय,
__ त्यों तुम अनुभवतें भव नसाय ॥१६॥ त्रिभुवनतिहुंकाल मँझार कोय,
नहिं तुम बिन निज सुखदाय होय । मो उर यह निश्चय भयो आज, दुखजलधिउतारन तुम जिहाज ॥१७॥
दोहा तुम गुण-गण-मणि गणपति, गणत न पावहिं पार । 'दौल' स्वल्ममति किम कहै, नमूं त्रियोगसँभार ॥१८॥
दर्शन-पाठ प्रभु पतितपावन मैं अपावन,
चरन आयो सरन जी । यो विरद आप निहार स्वामी,
मेट जामन मरनजी । तुम ना पिछान्या आन मान्या,
देव विविधप्रकार जी ।