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तातै नहिं छाया पड़े, बन्दूं यह माधुर्य । ॐ ह्रीं श्रीश्रवणबेलगोला-विध्यगिरिस्थ बाहुबलिजिनाय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
गोम्मटगिरि वेणूर में, जजू नाय कर शीश । पूंजूं आरा कारकल, और जहां हों ईश ॥ ॐ ह्रीं श्रीगोम्मटगिरि वेणुपुर, धनुपुरा (आरा) कारकल आदिविविधस्थानस्थ श्रीबाहुबलिजिनप्रतिमाय अर्घ निर्वपामि।
नमूं शिखर कैलाश निहि, शेष कर्म करि शेष । लोक शिखर चूड़ामणी, भए सिद्ध परमेश ॥ ॐ ह्रीं श्रीकलाशशिखरात् सिद्धिंगताय श्रीबाहुबलिसिद्धाय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
जयमाला
दोहा सवा पांचसो धनुष तन, लतायुक्त अभिराम । खड्गासन मरकत वरण, सुन्दर रूप ललाम ।।
पद्धरी जय बाहुवलीश्वर सुगुण धाम, चरणों में हों कोटिक प्रणाम । तुम आदि ब्रह्म के सुत सुजान, था अंतरंग में स्वाभिमान ।। प्रण था वृषभेश्वरके सिवाय, यह मस्तक परको ना झुकाय । पद-खण्ड भूमि भरतेश जीत, लौटे जव अवधपुरी पुनीन ।। नहिं कर चक्र तव पुर प्रवेश, भरतेश्वर की जय श्री अगेष ।