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________________ ११ जयमाला पारसनाथ जिनंदतने वच पौनभखी जरते सुन पाये, करो सरधान लहो पद आन भये पद्मावति-शेष कहाये। नाम प्रताप टरे संताप सुभव्यनको शिव-शर्म दिखाये, हो अश्वसेन के नंद भले गुण गावत हैं तुमरे हरषाये ।। दोहा केकी-कंठ समान छवि, वपु उतंग नव हाथ । लक्षण उरग निहार पग, बंदूं पारसनाथ ।। मोतियादाम छंद रची नगरी षट् मास अगार, बने चहुँ गोपुर शोभ अपार । सु कोटतनी रचना छवि देत, कगूरनपं लहकै बहु केत ॥१॥ बनारस की रचना जु अपार, करी बहु भांत धनेश तैयार । तहाँ अश्वसेन नरेंद्र उदार, करें सुख वाम स दे पटनार ॥ तजो तुम प्राणत नाम विमान, भये तिनके घर नदन आन । तब पुर इन्द्र नियोगनि आय, गिरीद्र करी विध न्होन सु जाय ।।
SR No.010526
Book TitleJinendra Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Jain
PublisherRaghuveersinh Jain Dharmarth Trust New Delhi
Publication Year1981
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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