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जयमाला
पारसनाथ जिनंदतने वच पौनभखी जरते सुन पाये, करो सरधान लहो पद आन भये पद्मावति-शेष कहाये। नाम प्रताप टरे संताप सुभव्यनको शिव-शर्म दिखाये, हो अश्वसेन के नंद भले गुण गावत हैं तुमरे हरषाये ।।
दोहा केकी-कंठ समान छवि, वपु उतंग नव हाथ । लक्षण उरग निहार पग, बंदूं पारसनाथ ।।
मोतियादाम छंद रची नगरी षट् मास अगार,
बने चहुँ गोपुर शोभ अपार । सु कोटतनी रचना छवि देत,
कगूरनपं लहकै बहु केत ॥१॥ बनारस की रचना जु अपार,
करी बहु भांत धनेश तैयार । तहाँ अश्वसेन नरेंद्र उदार,
करें सुख वाम स दे पटनार ॥ तजो तुम प्राणत नाम विमान,
भये तिनके घर नदन आन । तब पुर इन्द्र नियोगनि आय,
गिरीद्र करी विध न्होन सु जाय ।।