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ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनायजिनेंद्र ! अत्र अवतर अवतर सवौषट् ।
ह्रीं श्री पार्श्वनाथजिनेंद्र ! अन तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । ॐ ह्रीं श्री पाश्वनाथजिनेंद्र ! अब मम सन्निहितो भव भव वपट
चामर छंद क्षीर सोम के समान अंबु-सार लाइये, हेम-पान धारके सु आपको चढ़ाइये । पार्श्वनाथदेव सेव आपकी करूं सदा,
दीजिये निवास मोक्ष भूलिये नहीं कदा ॥ ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय गर्भजन्मतपज्ञाननिर्वाणपंचकल्याणकप्राप्ताय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
चंदनादि केसरादि स्वच्छ गंध लीजिये।
आप चर्न चर्च मोह-तापको हनीजिये ॥पार्श्व० ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाजिनेन्द्राय ! गर्भजन्मतपज्ञाननिर्वाणपंचकल्याणकप्राप्ताय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
फेन चंदके समान अक्षतं मँगायके।
पादके समीप सार पूजको रचायके पार्श्व० ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथजिनेन्द्राय ! गर्भजन्मतपज्ञाननिर्वाणपंचकल्याणकप्राप्ताय अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।
केवड़ा गुलाब और केतकी चुनाइये।।
धार चर्णके समीप काम को नशाइये ॥पार्श्व० ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय ! गर्भजन्मतपज्ञाननिर्वाणपंचकल्याणकप्राप्ताय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।