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घत्तानंद श्रीशांति तुम्हारी कीरति भारी, सुर नर नारी गुणमाला । 'बखतावर' घ्यावे 'रतन' सुगावे,
मम दुःख दारिद सब टाला ॥ ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ जन्म तप ज्ञान निर्वाण पचकल्याणक प्राप्ताय महायं निर्वपामीति स्वाहा।
शिखरणी छंद अजी ऐरानंदं छवि लखत हैं आय अरनं । धरै लज्जा भारी करत थुति सो लाग चरनं । करे सेवा सोई लहत सुख सो सार छिन में । घने दीना तारे हम चहत हैं वास तिन में ॥१३
__ इत्याशीर्वादः
श्री पार्श्वनाथ जिनपूजा
[कविवर बखतावरजी] वर स्वर्ग प्राणतको विहाय सुमात वामा-सुत भये । अश्वसेन के पारस जिनेश्वर चरण तिनके सुर नये ॥ नौ हाथ उन्नत तन विराजे उरग-लक्षण अति लसै । थापू तुम्हें जिन आय तिष्ठो कर्म मेरे सब नसें ॥