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________________ १०७ कोश मालती छन्द पंचम उदधि तनो जल निरमल, कंचन कलश भरे हर्षाय । धार देत ही श्रीजिन सन्मुख, जन्म जरा - मृत दूर भगाय ॥ शान्तिनाथ पंचम चक्रेश्वर, द्वादश मदनतनो पद पाय । तिनके चरण कमल के पूजे, रोग शोक दुख दारिद जाय ॥ ॐ ह्रीं श्रीशान्तिनाथ जिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपा०। मलयागिर चंदन कदलीनंदन, कुंकुम जल के संग घसाय । भव - आताप विनाशन कारण, चरचू चरण सबै सुखदाय ॥शां०॥ ॐ ह्रीं श्रोशान्तिनाथ जिनेन्द्रायसंसार तापरोगविनाशनाय चन्दनं पुण्य राशि सम उज्ज्वल अक्षत, शशि मरीचि तिस देख लजाय । पुञ्ज किये तुम आगे श्रीजिन, अक्षयपद के हेतु बनाय ॥शां०॥ ॐ ह्रीं श्रीशान्तिनाथ जिनेन्द्राय अक्षयपद प्राप्तये अक्षतान् ।
SR No.010526
Book TitleJinendra Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Jain
PublisherRaghuveersinh Jain Dharmarth Trust New Delhi
Publication Year1981
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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