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कोश मालती छन्द पंचम उदधि तनो जल निरमल, कंचन कलश भरे हर्षाय । धार देत ही श्रीजिन सन्मुख, जन्म जरा - मृत दूर भगाय ॥ शान्तिनाथ पंचम चक्रेश्वर, द्वादश मदनतनो पद पाय । तिनके चरण कमल के पूजे,
रोग शोक दुख दारिद जाय ॥ ॐ ह्रीं श्रीशान्तिनाथ जिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपा०।
मलयागिर चंदन कदलीनंदन, कुंकुम जल के संग घसाय । भव - आताप विनाशन कारण,
चरचू चरण सबै सुखदाय ॥शां०॥ ॐ ह्रीं श्रोशान्तिनाथ जिनेन्द्रायसंसार तापरोगविनाशनाय चन्दनं
पुण्य राशि सम उज्ज्वल अक्षत, शशि मरीचि तिस देख लजाय । पुञ्ज किये तुम आगे श्रीजिन,
अक्षयपद के हेतु बनाय ॥शां०॥ ॐ ह्रीं श्रीशान्तिनाथ जिनेन्द्राय अक्षयपद प्राप्तये अक्षतान् ।