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पूर्व भव में इसकी सेवा, करी नहीं मनलाय । इस भव में कोई साधन देते, जीव सदा दुःख पाय रे |स | २८६ | वीरों को कायर करने का, तजदो झूठा स्वजन होतो करो सहायता, मिटे कर्म का
फन्द ।
द्वन्द्व रे । स । २६० ।
संयमभार ।
गया
जयजयकार |
राजभार सव सौंप पुत्र को लीना प्रत्येक बुद्धि हुये नमीजी, पाये मोक्ष सिधाये मंगल पाये, हो सुव्रता सती संयम पाली, पहुंची मोक्ष मंझार रे । स । २६२ । कथी कथा यह ग्रंथाधारे, सज्जन आगम से विपरीत होयतो, लीजो तेने सुधार रे | स | २६३ । जो जस गावे साता पावे, आराधे जामनगर के चतुर्मास में गाया चरित्र सुखदार रे । स ।२६३ ।
लीजो सार
भव-पार ।
केवल सार
रे । स । २६१ ।