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नमिराय तब नत हो बोले, यों मत बोलो भ्रात । अपराधी को शिक्षा करना, नीति धर्म की बात रे ।स ।२७४ । राज-ताज अपराधी भैया! निश्चय लेवो जान । इसको तज के संयम लेके, पाऊं मोक्ष सुख-स्थान रे ।स।२७५ । परजा जन को धीर बंधाई, नमिराय समझाय । चन्द्रयश नृप संयम लेके, परम शांति सुख पाय रे ।स ।२७६ । परजा जन के नम्रभाव से, नमिजी बन गये राय । मिथिला और सुदर्शन पुर के, सब जन मंगल गाय रे ।स |२७७। कार्तिक पूनम सौम्य चांदनी, सोये सुखभर सेज । सुखदाई थी सौध-अटारी, था नृप मन में तेज रे ।स२७८ । दाहज्वर की वेदन भारी, प्रकटी राय शरीर । अग्नि सम काया घबराया, नमिराय बडवीर रे।स।२७६ | विधि विधि से सब सेवा करते, राजवैद्य परवीण । तथापि शांति नृप नहीं पाता, सब जन हो गये क्षीण रे ।स ।२८० । प्रेम-प्रवीणा पटरानी कहे, कहो पीड़ा महाराज । दाझ समझ के रानी सोचे, चन्दन हैं सुखसाज रे ।स।२८१ । वावन चन्दन लेप करन से, नृप पाया तब चैन । सव अन्तेउर चन्दन घसता, राजा बौला वैन रे ।स।२८२ । कंकण शब्द से मैं दुःख पाऊं, निद्रा जाती भांग । पटरानी कहै सब रानी से, कंकण को दो त्याग रे ।स।२८३ । इक इक चूड़ी रखो हाथ में, शब्द हुआ जब बन्द । नमिराय जी मन में समझे, दो से होता द्वन्द्व रे ।स।२८४ | रे रे आतम! दुइ को छोड़ो सेवो एकानन्द । देहादिक परिवार संग से, बढ़े कर्म का फंद रे ।स।२८५ । संयम मुख एकत्व-भाव में रहना, मुझे जरूर । निर्मलभावे नृप के तन से, वेदन हो गई दूर रे |स २८६ । सपने से पूरव भव जाना, भाव बढ़े भरपूर । स्वजनवर्ग को शिक्षा देते, सतवादी महाशूर रेस ।२८७। संयमश्री है सुख की दाता, विघ्न करै चकचूर । नाथ बनाती भव-भय हरती, भर्म करे सब दूर रे ।स।२८८ |