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जल लेने को उठे वाहुजी, विनय भाव को लाय । निर्दय मणिरथ खङ्ग निकाला, मस्तक दिया लगाय रेस ११०४। विपमिश्रित धी खङ्गधार वह सिर पर चमकी आय । शैलशिखर सगगिरे वाहुजी, दिल में बहु अकुत्लाय रे ।स ।१०५ । एकवार जब कामदेव ने, मन फैलाया ज्दर । तव सव अनरथ होते उससे, बंधते जीवन-वैर रे ।स।१०६ । संग में रहते हँसते रमते, खाते भ्रमते एक । दोय देह पर एक हदय हो, रहते एकामेक रेस 1१०७ । एक सहोदर भाई-भाई में काम कराता वैर। प्राणहरण की बुद्धि देता, काम नहीं यह न्हैर रे ।स।१०८ । हा-हा अकारज हुआ सतीजी, मन में अति दुख पाय । मूर्छ आई चेत को पाई, पंखणी सम कुरलाय रे।स। १०६ । सागंतगण जव भेद को पाये, मार मार कर धाये । निर्लज्ज तोकू लाज न आई, यों कह रोष भराये रे ।स।११०। भाई घातक तूं है राजा, नहीं तजने के योग । करो इष्ट को याद हमारे, वनो खण के भोग रे।स।१११ । पली-पुत्र का क्या हाल होगा, यों सोचे दिल गांय । अशक्ता से उठा न जाता, पाहुजी घबराय रे ।स।११२ । अन्तिम अवसर जान सती ने, प्रभु का कर सम्मान । सांगतों से वोली रानी, मत लो इसका प्रान रेस 1११: । रक्त रक्त से शुद्ध न होता, शांति लेओ धार । अल्प समय की स्वामी सेवा, जिससे सुधरे कार रेस ११४ सती चोध से सांगत समझे, दीना राजा छोड़। पति गोद में लिया सती ने, यों बोली कर जोड़ रेस 1११।
एक प्रासंगिक-गीत तर्ज-हिरदे राखीजे हो भवियण मंगलीक भरणा चार सुस्वर करी कहै कंध नै, हो प्रीतम, सुनो बचन पर ध्यान । अन्त समय हियै आवियो, हो प्रीतम, घसे धन चित्त ध्यान ।। हिरदे राखीजै, हो प्रीतम ! मंगलीक, परा का करा
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