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पाप मति मणिरथ मन सोचे, मयणरेहा का बोल । युग बाहु को जो नहीं मारूं, तो स्थिति डांवाडोल रे ।स |८६ | युगवाहु नारी सह वन में, सुन कर हर्ष भराया । खङ्ग हाथ ले हयारूढ़ हो, मणिरथ हलकर आय रे ।स।६० पहरेदार तकरार करे जब, भाई पै कहलाय | दूत तुम्हारे मुझे रोकते, मैं मिलने को आय रे ।स।६१ । मयणरेहा ने कहा पति से, भाई—प्रेम मति जानो। अकाल में यह आया चलकर, निश्चय दगा पहचानो रेस२। रे रे प्रिया! भाई है मेरा, मत शंको नादान । भाई विनय से मुझे रोकती, रहा न तुमको भान रे ।स ।६३ । बीती बात सुनाई सती ने, सुनकर आया रोष । तो डर नहीं है उस पापी का, देखन दो मुझ जोश रे ।स।६४ | वहुत विनय से कहा सती ने, होनहार बलवान । मानी नहीं युगबाहुजी ने, छोडा सती ने ध्यान रे ।स।६५ । गया सामने भाई लेने, सती परदे के मांय । मणिरथ आया वचन सुनाया, क्यों आये तुम राय रे ।स।६६ । प्राणपियारा भाई हमारा, वन में किया निवास । सुनके चेतन हुआ दौड़ते, मैं आया तुम पास रे ।स |६७। योग्य स्थान यह नहीं तुम्हारे, वैरी जीत घर आये। ऐसे समय में छलिया छलते, दिल मेरा घबराये रे ।स।६८ | स्थानभ्रष्ट नहीं रहै राजवी, नीतिधर्म का नेम | तुमरै खातिर किला बना है, जिसमें पाओ क्षेम रे ।स।६६ | तुम तज के क्यों आये राजा, जो ऐसा था ध्यान | भाई-रक्षा कर्त्तव्य मेरा, मैं क्षत्रिय बलवान रे ।स।१००। मैं भी तो हूं भाई तुम्हारा, यह क्यों भूलो भान । ध्यान रहा नहीं भाई हमारा, तुममें उलझे प्रान रे ।स।१०१ । इस प्रपंच से भाई तुम्हारा, मन मैला दरसाय | वैरी एक न रहा राज में, झूठी तर्क उठाय रे ।स।१०२ । झूठा प्रपंची जव तुम मानो, पानी देवो पिलाय || में जाता हूं मेरे धाम को, दिल को लो समझाय रे ।स।१०३ ।