________________
गोशालक के प्रति असहयोग करके भी सकडाल ने अपनी सभ्यता नहीं गंवाई। गोशालक के जाने पर वह उठा नहीं, इसका कारण यह था कि गोशालक अपने सिद्धान्त का प्रतिनिधित्व करने गया था। उस समय उसका 'मिशन', अपने सिद्धान्त को स्वीकार कराना था। सच्चा असहयोगी किसी व्यक्ति विशेष की अवज्ञा नहीं करता। किसी व्यक्ति के प्रति उसके हृदय में घृणा या द्वेष का भाव नहीं होता। असहयोगी अपनी सम्पूर्ण शक्ति लगाकर अन्याय का प्रतिकार करता है और अन्यायी को सहयोग न देना भी अन्याय के प्रतिकार के अनेक रूपों में से एक रूप है। असहयोग प्रत्येक मनुष्य का न्यायसंगत अधिकार है, यदि उसकी सब शर्ते यथोचित रूप में पालन की जाए।
सकडाल के असहयोग के कारण गोशालक को निराश होना पड़ा, वह भगवान महावीर के सिद्धान्त पर अटल और अचल रहा।
यहां बैठे हुए भाइयों में शायद ही कोई होनहारवादी होगा। पर ऐसे बहुत-से लोग मिलेंगे जो कहा कहते हैं—'भगवान् करते हैं सो होता है। उनकी मान्यता यह है कि हमारे किये कुछ नहीं होता। हम नाचीज हैं। हम भगवान् के हाथ की कठपुतली है। वह जैसा नचाता है, हमें नाचना पड़ता है।'
मैं कहता हूं, भाइयों ! इस भ्रम को दूर कर दो। इससे तुम्हारे विकास में, तुम्हारी क्षमता में और तुम्हारे पुरुषार्थ में वाधा पड़ती है। इस भ्रम के कारण तुम्हारी स्वातन्त्र्य-भावना दब गई है। गीता को देखो। वह कहती
न कर्तृत्वं न कर्माणि, लोकस्य सृजति प्रभुः।
न कर्मफलसंयोगं स्वभावस्तु प्रवर्त्तते ।। परमात्मा किसी मनुष्य का न कर्तृत्व बनता है, न कर्म । न वह कर्ता को कर्मफल देने की व्यवस्था ही करता है। यह सव माया करती है |
जैन भाई भी अन्धविश्वास से दूर नहीं है। वे भी 'क्या करें महाराज, कर्मों की गति !' कहकर अपना सारा दोष कर्मों के सिर मढ़ देते हैं। मानों कर्म विना किये हुए ही उन्हें फल देने आ टूटे हैं। स्वयं कुछ करने वाले ही नहीं हैं।
मित्रों! आज गोशालक दिखाई नहीं देता, पर उसका उपदेश गोशालक का सूक्ष्म रूप धारण करके आपके समाज में घूम रहा है। आप अपनी उद्योगशीलता को भूल रहे हैं। आपने अपनी क्षमता की ओर से दृष्टि फेर ली है। आप अपने-आपको अकिंचित्कर मान बैठे हैं। यह दीनता का भाव दूर करो। अपनी असीम शक्ति को पहचानो। सच्चे वीरभक्त हो तो अपने को कर्ता–कार्यक्षम मानकर कल्याणमार्ग के पथिक बनो।
किसी भी दूसरे की शक्ति पर निर्भर न वनो। समझ लो, तुम्हारी एक मुट्ठी में स्वर्ग है, और दूसरी में नरक है। तुम्हारी एक भुजा में अनन्त संसार है और दूसरी भुजा में अनन्त मंगलमयी मुक्ति है। तुम्हारी एक दृष्टि में घोर पाप है और दूसरी दृष्टि में पुण्य का अक्षय भण्डार भरा है। तुम निसर्ग की समस्त शक्तियों के स्वामी हो, कोई भी शक्ति तुम्हारी स्वामिनी नहीं है। तुम भाग्य के खिलौना नहीं हो वरन् भाग्य के निर्माता हो। आज का तुम्हारा पुरुषार्थ कल भाग्य बनकर दास की भांति, तुम्हारा सहायक होगा। इसलिए हे मानव ! कायरता छोड़ दे। अपने ऊपर भरोसा रख । तू सब कुछ है, दूसरा कुछ नहीं है। तेरी क्षमता अगाध है। तेरी शक्ति असीम है। तू समर्थ है। तू विधाता है। तू ब्रह्मा है। तू शंकर है। तू महावीर है। तू वुद्ध है।
२१