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मबाहर द्वार
भीनासर प्रवेश स्थल पर मुख्य सड़क पर भव्य जवाहर द्वार का निर्माण प्रस्तावित है। श्रीमद् वाचार्य की सूक्तियों से मंडित यह द्वार अपने में विशिष्ट होगा।
1. भाऊ का मशीनीकरण
वर्तमान में संचालित ठण्डे पानी की प्याऊ में मशीन लगाने की योजना है। परिणाम स्वरूप हर समय तल पेय जल उपलब्ध होगा तथा किसी पर निर्भरता समाप्त हो जायेगी।
शिवलोकन : रज से स्वर्ण की यात्रा
जवाहर विद्यापीठ की परिकल्पना से पूर्व यहां क्या था ? आचार्यश्री की चरण रज का ही प्रभाव है कि गित साधनों के वावजूद संस्था ने अर्द्ध शताब्दी की यात्रा परिपूर्ण की है। प्रकाशन, सेवा, शिक्षा-प्रसार, संस्कार गि आदि क्षेत्रों में कीर्तिमानीय कार्य-शृंखला संस्था के लिए गौरव का विषय है। अव तक की प्रवृत्तियों का
न परिचय देना अप्रासंगिक नहीं होगा। रज से स्वर्ण तक की यह यात्रा अनन्त चलती रहेगी, यही विश्वास है। श्री जवाहर विद्यापीठ की पंच दशकीय विकास गाथा : प्रारम्भिक विचार-विमर्श
सर्वप्रथम दिनांक ६-१२-४३ रविवार को परमप्रतापी स्वर्गीय जैनाचार्य पूज्य श्री जवाहरलालजी का परक बनाने के विपय पर विचार करने के लिए सेठिया कोटड़ी बीकानेर में त्रिवेणी संघ बीकानेर, गंगाशहर व *नार की संयुक्त बैठक श्रीमान् भैरूदानजी सेठिया की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई। स्मारक के लिए धन एकत्रित रन के उद्देश्य से दानवीर सेठ भैरूदानजी सेठिया से परामर्श करके श्री चम्पालालजी वांठिया ने एक अपील राजा थी। वांठियाजी ने प्रस्ताव रखा कि अपील में प्रस्तावित योजनाओं पर विचार-विमर्श करके यह तय किया
कोनसी योजना कार्यरूप में परिणत करनी चाहिए और सर्व सम्मति से निर्णय लिया गया कि स्वर्गीय पूज्य पत्री जवाहरलालजी म.सा. की स्मृति को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए एक शिल्प मन्दिर खोला जाय। _. श्री जयचन्दलालजी रामपुरिया ने प्रस्ताव रखा कि इसका निर्माण भीनासर में ही होना चाहिए, जहां का का स्वर्गवास हआ। दमका समर्थन भी पसराजजी बच्छावत ने किया। भमि निर्धारण का प्रश्न उठा ता
नाचन्दजी लूनिया तथा मूलचन्दजी लूनिया ने उदारतापूर्वक अपनी १६०० गज जमीन समाज की सेवा करने की घोषणा की। यहीं पर १६०० गज जमीन श्री जेठमलजी लूनिया की थी उन्हें भी इस पुनीत लिए अपनी जमीन समर्पित करने की प्रार्थना करने का निर्णय लिया गया। तदनन्तर एक कायकारिणा ॥ गठन किया गया। कार्यकारिणी में वीकानेर के ११ सदस्य लिये गये तथा भीनासर-गंगाशहर के सदस्या जयपालालजी वांठिया को यह जिम्मेदारी दी गई। तदनुसार दिनांक २ जनवरी १६४४ को श्रीमान लिखमीचन्दजी मूलचन्दजी लूनिया की कोटड़ा मामान
चाक सभापतित्व में बैठक आयोजित की गई। इसमें दोनों श्री संघों के ७.७ सदस्य दन्ति फिर
श्री लक्ष्मीचन्दजी लूनिया तथा मूल जत करने की घोषणा का
लिए अपनी जमीन या गटन किया गया
मनी बांटिया के सभापतित्व