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आचार्यश्री का स्वर्गारोहण : स्मारक की परिकल्पना
श्रीमद् जवाहराचार्य अन्तिम समय भीनासर में विराज रहे थे। सं. २००० आषाढ़ शुक्ला अटगी को आपने संथारा पूर्वक पार्थिव देह त्यागी। रातों रात तार-टेलिफोन से श्री संघों को सूचित किया गया। महाप्रयाण यात्रा में सम्मिलित होने के लिए अगले दिन लगभग दस हजार श्रद्धालुजन एकत्रित हो गये। जय जयकार सहित रजत वैकुंठी में उनकी पार्थिव देह को गंगाशहर-भीनासर के प्रमुख मार्गों से होकर भीनासर की श्मशान भूगि तक ले गये।
बीकानेर राज्य की तरफ से पूज्य श्री के मान में डंका, निशान तथा छड़ी का लवाजमा भेजा गया था। वीकानेर नगर ही नहीं, सम्पूर्ण रियासत में कसाई खाना, भट्टिये आदि बन्द रखने तथा सभी सरकारी ऑफिस व स्कूल वन्द रखने का हुक्म जारी किया गया । वाजार भी प्रायः बन्द रहे।
जुलुस के आगे डंका निशान, उसके पीछे बैंड और छड़ी तथा उनके पीछे जयघोष करती हुई भजन गाती हुई जनता। इनके बाद चंवर दुलाते हुए पूज्य श्री के शव की पालखी और फिर श्राविकाओं का झुंड । अंत में उछाल की रकम के ऊंट चल रहे थे। हजारों रुपये नकदी तथा रजत व स्वर्ण फूल की उछाल की गई। बारह बजे पश्चात् चन्दन, खोपरा, घृत, कर्पूर आदि पदार्थों से पूज्य श्री का पालखी सहित अग्नि संस्कार किया गया।
आषाढ़ सुदी १० को प्रातः काल ६ बजे चतुर्विध संघ की एक शोक सभा आयोजित की गई। इरागें श्रीमान् चम्पालाल जी वांठिया ने आचार्यश्री की स्मृति रूप में एक जीवन्त स्मारक बनाने की अपील की। इस सूत्र को आगे वढ़ाया श्री लहरचन्द जी सेठिया (बीकानेर) ने ।
वांठिया सा. ने कहा कि आचार्यश्री के प्रति यदि वास्तविक भक्ति है तो उनके प्रवचनों के प्रकाशन हेतु एक स्मारक फण्ड स्थापित किया जाना आवश्यक है। उपस्थित जनता भी सहयोग हेतु तत्पर थी। तत्काल ही श्रीमान् अगरचंद जी भैरोंदान जी सेठिया की ओर से ११००१) की राशि घोषित की गयी एवं इतनी ही राशि श्रीमान् वहादुरमल जी व चंपालाल जी वांठिया की ओर से लिखाई गई। वरतुतः श्री जवाहर विद्यापीठ का परिकल्पना उस समय नहीं बनी परन्तु स्मारक फंड स्थापित हो गया।
तदनन्तर विचार-विमर्श के पश्चात् श्री जवाहर विद्यापीठ का स्वरूप सामने आया और इसकी स्थापना हो गई। आज संस्था ने पांच दशक की यात्रा पूर्ण की है। इसकी वर्तमान प्रवृत्तियों का परिचय एवं अब तक की विकास यात्रा अग्रतः प्रस्तुत है। श्री जवाहर विद्यापीठ : वर्तमान प्रवृत्तियां
क्रान्तदर्शी युगप्रधान आचार्य श्री जवाहरलाल जी म. सा. का जीवन्त स्मारक है विद्यापीठ । शिक्षा, ज्ञान एवं सेवा की त्रिवेणी प्रवाहित करते हुए इसने पांच दशक पूर्ण किये हैं। इसके स्वरूप में समय-समय पर किरन
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