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प्रतिभा, पुरुषार्थ और सेवा के प्रतीक : सेट श्रीमान् चम्पालाल जी बांठिया
उदय नागोरी
एम.ए. (दर्शन), जै. सि. प्रभाकर
श्री जवाहर विद्यापीठ, भीनासर के संस्थापक श्रीमान् चम्पालाल जी बांठिया को भीनासर के भामाशाह, गरीबों का मसीहा और समर्पित समाजसेवी रूप में कौन नहीं जानता ? लक्ष्मी के इस वरद पुत्र ने सदैव सरस्वती की पूजा की, पदलिप्सा से कोसों दूर रहे व जन सेवा में समर्पित रहकर अतुलनीय आदर्श स्थापित किया। कुशाग्रबुद्धि, श्रमनिष्ठता एवं संघनिष्ठता के सम्बल से आप हर क्षेत्र में सफलता के शिखर पर पहुंचे पर अपने को समाज, राष्ट्र व संस्थाओं का एक सेवक ही माना । वस्तुतः आपने एक कालखण्ड को स्थिर कर अपने सशक्त हस्ताक्षर किये और स्वयं को इतिहास के पृष्ठों में स्थायी कर दिया। आपका जन्म १५ दिसम्बर सन् १६०२ तदनुसार मिति मिगसर सुदी पूर्णिमा संवत् १६५६ को भीनासर में हुआ । अपने पिताजी श्री हमीरमलजी बांठिया से व्यावसायिक प्रतिभा व समाज सेवा तथा माताजी श्रीमती जवाहर बाई से धार्मिक संस्कार आपको विरासत में मिले थे। कठोर परिश्रम, अदम्य साहस एवं सेवा भावना से आपने व्यावसायिक क्षेत्र में अपना स्थान बनाया तो समाज भी लोकप्रिय बने । मिलनसारिता, निरभिमान एवं मृदुल व्यवहार आपकी निजी विशेषताएं थीं।
आपने सामाजिक, धार्मिक, शैक्षणिक कार्यों में अपूर्व योगदान देकर एक अनुकरणीय आदर्श प्रस्तुत किया। विविध संस्थाओं को लक्षाधिक रुपयों का दान दिया, जन-जन के दुःखों का निवारण किया और छात्र-छात्राओं का जीवन आलोक से भर दिया। श्री जवाहर हाई स्कूल, कन्या पाठशाला व प्राईमरी स्कूल का निर्माण कराकर आपने भीनासर ही नहीं निकटवर्ती क्षेत्रों को भी ज्ञान चेतना से जागृत कर दिया ।
आपने श्री जवाहर विद्यापीठ की स्थापना कर ज्योर्तिधर आचार्य श्री जवाहरलाल जी म. सा. की वाणी को जन-जन तक पहुंचाने का भागीरथ कार्य किया है। आचार्य श्री के व्याख्यानों पर आधारित जवाहर किरणावली के ३५ भाग प्रकाशित कराकर आपने उनके सन्देशों को कालजयी बना दिया । पुस्तकालय, वाचनालय, सिलाई-बुनाई-कढ़ाई केन्द्र आदि के माध्यम से संस्था महत्त्वपूर्ण कार्य कर रही है।
बांठिया सा. में नेतृत्व की प्रतिभा थी। श्री अ. भा. स्थानकवासी जैन कान्फ्रेंस के सादड़ी अधिवेशन में आपको अध्यक्ष बनाया गया और यह अधिवेशन ऐतिहासिक बन गया । तदनन्तर आपने भीनासर में वृहद् साधु सम्मेलन भी आयोजित कराया। इसमें आशातीत सफलता मिली। सेवा व सरलता की प्रतिमूर्ति रूप वांठिया सा. अपनी सुवास से जैन समाज को नई गति प्रदान की ।
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