________________
भारत का दुर्भाग्य है कि यहां के लोग कुछ भाइयों से ऐसा परहेज करते हैं कि उनको छू लेनेसे अपने आपको अपवित्र मानने लगता है। अर्थात् वे अपने भाई को छूना नहीं चाहते। मगर अछूत कहलाने वाला व्यक्ति क्या उनकी ही तरह समाज का अंग नहीं है ।'
'हरिजन ईश्वर के चरण हैं। ईश्वर के चरणों का स्पर्श और पूजा की जाती है। हरिजनों से घृणा करना ईश्वर को भुलाना है और देश को डुबाना है। जैन समाज अन्त्यजोद्धार में अपना सहयोग जितना देगा वह उतनी ही ज्यादा धर्म की सेवा करेगा।'
आचार्य श्री के अन्त्यजोद्धार सम्बन्धी उद्गारों को सुनकर ठक्कर बापा (श्री अमृतलाल ठक्कर ) ने उल्लेख किया है 'श्री जवाहिर लालजी महाराज का नाम बहुत दिनों से सुना करता था । महात्मा गांधी ने भी आपका उपदेश सुनने की इच्छा दर्शायी थी। इसी से जाना जा सकता है कि आपका उपदेश कितना - बोधप्रद होगा । आप खादी और हरिजनों का उद्धार करने का उपदेश भी सुन्दर रीति से दिया करते हैं।'
आचार्य श्री जवाहर लालजी महात्मा गांधी को शास्त्रों में वर्णित सच्चा 'राष्ट्र स्थविर' एवं अरिहंतों और सिद्धों की सत्य और अहिंसा की शक्त व महिमा का वर्तमान युग का प्रत्यक्ष प्रमाण मानते हैं । महात्मा गांधी की सत्यनिष्ठा, निर्भयता और प्रामाणिकता सेवा, सादगी, स्वदेशी, स्वावलम्वन और हरिजन प्रेम तथा राष्ट्र और उसकी . स्वाधीनता के विचारों का समर्थन देते हैं और उनको धार्मिक आधार देकर प्रतिष्ठित करते हैं।
उस काल में जब अधिकतर जैन धर्माचार्य स्वतन्त्रता आन्दोलन व रचनात्मक कार्यों को राग-द्वेष और हिंसा की चालें मानते रहे तभी आचार्य श्री जवाहरलालजी सबसे भिन्न, राष्ट्र धर्म प्रखर प्रचेता धर्मनायक सिद्ध होते हैं ।
है
राष्ट्रनायक महात्मा गांधी के सत्य और अहिंसा के प्रयोगों से सिद्ध विचारों और कार्यों को राष्ट्र और विश्व तथा धर्मनायक आचार्य श्री जवाहर के उपदेशों को जैन व्यक्ति और समाज कितना आत्मसात् कर पाया यह चिन्तनीय है । इन विचारों, कार्यों और उपदेशों की सार्थकता और प्रासंगिकता वर्तमान जागतिक परिस्थिति में राष्ट्र, समाज और व्यक्ति की स्वाधीनता, स्वदेशी, आत्मनिर्भरता, स्वत्व रक्षा, समरसता और सम्पूर्ण मानव जाति के भावी विकास के सन्दर्भ में माननीय है ।
0
१४८
S
:
1