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मंगल-सन्देश
तपस्वी रत्न श्री मगन मुनिजी मुनि नेमिचन्द्रजी ।
यह जानकर अतीव प्रसन्नता है कि स्व. जैनाचार्य पूज्य श्री जवाहरलालजी महाराज की पुण्य-स्मृति में स्व. सेठ श्री चम्पालालजी बांठिया द्वारा स्थापित श्री जवाहर विद्यापीठ की स्वर्णजयन्ती मनाई जा रही है और इस अवसर पर एक स्मारिका भी प्रकाशित की जाएगी।
श्री जवाहर विद्यापीठ की स्थापना हुए पचास वर्ष होने जा रहे हैं। यह किसी भी संस्था की प्रौढ़ता तथा समृद्धि की निशानी है। यह संस्था के संस्थापक और संचालक की सुदृढ़ श्रद्धा, भावना और कार्यक्षमता की परिचायिका है। स्व. सेठ श्री चम्पालालजी बांठिया की इस विद्यापीठ की स्थापना के पीछे यही भावना थी कि वालकों में स्व. पूज्यश्री के राष्ट्रीय, सामाजिक एवं पारिवारिक तथा धार्मिक विचारों का बीजारोपण किया जाए, उन्हें इन उत्तम विचारों से संस्कारित किया जाए, जिससे भविष्य में वे देश के होनहार राष्ट्रभक्त नागरिक बन सकें, समाज की उन्नति में अपना योगदान दे सकें और पारिवारिक जीवन में अपने उत्तम संस्कारों को सुरक्षित रख सकें। वैचारिक दृष्टि से विद्यार्थियों को समृद्ध बनाने हेतु स्व. श्री बांठियाजी ने इस विद्यापीठ के साथ एक पुस्तकालय की भी स्थापना की थी, ताकि विद्यार्थीगण केवल पाठ्यक्रम में निर्धारित पुस्तकें पढ़कर या केवल परीक्षाएँ उत्तीर्ण करके ही न रह जाएँ किन्तु वे पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय एवं धार्मिक विचारों से समृद्ध होकर अपने जीवन को सार्थक बनावें। साथ ही विद्यार्थियों के आचरण को तदनुरूप समृद्ध बनाने हेतु सेठ श्री चंपालालजी बांठिया ने धार्मिक क्रियाओं और परीक्षाओं द्वारा विद्यार्थियों का जीवन सैद्धान्तिक एवं आचारिक (थ्योरिटिकल एण्ड प्रेक्टिकल) दोनों दृष्टियों से उन्नत बनाने का उपक्रम किया था।
__ जिस महापुरुष की पुण्यस्मृति में विद्यापीठ स्थापित किया गया था, उनके विचार उस युग में, जबकि भारतवर्ष विदेशी सरकार की गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था, राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत थे। वे स्वयं
और उनके शिष्य प्रशिष्य खादी पहनते थे। इतना ही नहीं, इसी भीनासर में उन्होंने अपने जीवनकाल में स्थानांगसूत्र में भगवान् महावीर द्वारा प्ररूपित ग्राम धर्म, नगर धर्म, राष्ट्रधर्म, संघधर्म आदि दशविध धर्मो एव धर्मनायकों की विशद रूप से सुन्दर व्याख्या प्रस्तुत की थी। जिसे सुन कर उस समय के कई श्रावक-श्राविकाओं ने खादी और राष्ट्रीयता की विचारधारा अपना ली थी। अतः श्री जवाहर विद्यापीठ की स्वर्ण जयन्ती के अवसर पर हम यही अपेक्षा रखते हैं कि इस पुनीत अवसर पर श्री जवाहर विद्यापीठ के सभी विद्यार्थियों को आमंत्रित करके स्व. आचार्य श्री जवाहरलालजी महाराज के राष्ट्रीयता, सामाजिकता, पारिवारिकता एवं धार्मिकता के उन उन्नत विचारों के संक्षिप्त सूत्र बनाकर तदनुरूप संकल्प कराया जाए कि हम अपना सारा जीवन इन्हीं विचार सूत्रों के
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