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रदियां दूर कराई। रूढ़िच्छेद करने से समाज उद्धार की प्रवृति को बल मिला। विधवाओं की दशा देखकर आपकी आत्मा पुकार उठी-'विधवा बहनें आपके घर की शील देवियां हैं। इनका आदर करो, ये पावन हैं। मंगल रूप दनके शकुन अच्छे हैं। शील की मूर्ति क्या कभी अमंगलमयी हो सकती है?' नैतिकता के अग्रदूत
आचार्यवर ने नैतिकता पर विशेष जोर दिया। वे कहते थे कि जीवन की विशुद्धि हुए बिना धार्मिक जीवन का गठन नहीं हो सकता। परन्तु लोग नीति की नहीं, धर्म की ही बात सुनना चाहते हैं। आचार्यवर उन्हें साफ-साफ कहते थे—'लाचारी है मित्रां! नीति की बात तुम्हें सुननी होगी। इसके बिना धर्म की साधना नहीं हो सकती।' नैतिकता पर वे उतना ही जोर देते थे जितना धर्म पर | सर्वधर्म सद्भाव प्रणेता
एक सम्प्रदाय के गणीधर नायक होने पर भी उनका हृदय विशाल था। वे मानते थे कि मतमतान्तर तो येवल तरंगें हैं। उसका विकार है । बुदबुदे हैं। आध्यात्मिक रहस्य एक ही है। विभिन्न परिस्थितियों के कारण ऊपरी विरोध खड़े होते हैं और परस्पर टकराकर एकता में लीन हो जाते हैं। आप मानवता के परमपुजारी थे। मानवता
आपकी दृष्टि में सबसे बड़ा धर्म था। आपके व्याख्यानों में जैनदर्शन के साथ-साथ अन्य दर्शनों की तुलनात्मक प्रक्रिया और साथ ही सर्वधर्म समन्वय की पद्धति दृष्टिगोचर होती है।
____ आचार्यवर ने विशाल व्यक्तित्व एवं कृतित्व को शब्दों में बांधना दुष्कर कार्य है। उन्हें भावभीनी श्रन्द्रांजलि।