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जैन धर्म के प्रभावक आचार्य
प्रो. सुमेर चन्द जैन
जैन धर्म के प्रभावक आचार्यों में एक नाम, जिसे बड़े आदर से लिया जाता है, वह है क्रान्तिकारी - श्री जवाहरलालजी म.सा. का नाम। स्वतन्त्र व्यक्तित्व के धनी, मौलिक विचारधारा के प्रवाहक, सचोट विवेचक और राष्ट्रीय भावना के प्रेरक के रूप में आचार्यवर युगों-युगों तक स्मरणीय रहेंगे। विशाल तल-स्पर्शी अध्ययन, दृढ़ निश्चय और जन उत्थान के प्रति तीव्र भावना किसी महापुरुष के आवश्यक गुण | आचार्यवर सच्चे अर्थ में धर्माचार्य, तपस्वी और उपदेशक थे। वक्ता.
आचार्यवर एक प्रखर वक्ता थे। श्रोताओं पर उनके प्रवचन की गहरी छाप पड़ती थी। लेकिन विर के प्रवचनों का उद्देश्य न तो अपना वक्तृत्व-कौशल प्रगट करना था और न ही विद्वत्ता का प्रदर्शन करना द्यपि उनके प्रवचनों से उपर्युक्त दोनों विशेषताएँ स्वतः ही प्रकट हो जाती थी, वे तो चाहते थे कि श्रोताओं वन धार्मिक एवं नैतिक दृष्टि से ऊँचा हो। उनकी बात दिल में गहरी पैठ जाए इसके लिए गूढ़ विषय को बनाने के लिए वे कथा का आश्रय लेते थे। वे प्रायः पुराणों और इतिहास में वर्णित कथाओं का ही प्रवचन थे पर अनेकों बार सुनी हुई कथा भी उनके श्रीमुख से एकदम मौलिक लगती थी, ऐसे थे वे प्रभावोत्पादक
निर्माण कर्ता
स्वयं के जीवन को सफल बनाना और दसरों का जीवन निर्माण करना, इन दोनों में बहुत अन्तर है। म आत्म-साधना और आत्मकल्याण करने वाले और उसी में लीन रहने वाले निवर्तक साधु पुरुष बहुत मिल
किन निवृत्ति धर्म की पालना करते हुए भी मानव समाज का जीवन निर्माण करना अर्थात् मनुष्य को सही न मनुष्य बनाना, उसे ज्ञानी और चरित्रवान बनाना, उसे सदधर्म का मर्म समझाकर धर्मनिछ-नीतिनिष्ठ बनाना ७सा के लिए सम्पूर्ण जीवन को खपा देने वाले बिरले ही होते हैं और ऐसे बिरले महापुरुष थे आचार्य श्री
रलालजी म.सा.।
। सुधारक
एक समाज सुधारक के रूप में आचार्यश्री सदैव याद किए जाते रहेंगे। गुजरात, काठियावाड़, मारवाड़, पा, थली, दक्षिण, खानदेश, बम्बई, दिल्ली आदि क्षेत्रों में पैदल भ्रमण करके जैनों में से अज्ञानजन्य
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5, मालव