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ज्योतिर्धर जवाहराचार्य
→ सा. सुदर्शना श्रीजी
जवाहिराचार्य का स्वर्ग दिवस है, श्रद्धा सुमन चढ़ाऊं मैं । निष्ठा की अनुपम ज्योति से, जीवन दीप जलाऊं मैं ।। धन्य धरा वह धन्य मात है, धन्य जात और धन्य तात है । दिया लाल जवाहर जैसा, उनकी बलि बलि जाऊँ मैं ।।
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सद्भावमयी मन मुरली ले, समतागयी सुस्वर लहरी ले । हे लोकोत्तम ! तुम दुनियाँ में, इतिहास बनाने आये थे ।। युग पुरुष युगद्रष्टा तुमने, नूतन राह दिखाई कर्त्तव्यपथ से च्युत जगत् ने, नई चेतना पाई थी । । संस्कृति के सजग प्रतिहारी, करुणा के सच्चे अवतारी । तुम जन मन में सनिष्ठा का, विश्वास जगाने आये थे ।।
नभ को छूकर भी हिमगिरि, नहीं पा सका तव ऊँचाई । तल में जाकर भी जलनिधि, नहीं पा सका तव गहराई । । अनमाप गगन सा अपनापन और 'चाँद' सा विमल पावन मन । हे संघमाली तुम पतझड़ को मधुमास बनाने आये थे ।।
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