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मुँदै नयन को खोल जगाओ निश्चित पय पर पांच लाओ!
जिसने ग्रहण किया है इसको क्या असाध्य है जग में उसको; सब कुछ तुरत वही है पाता भव का जीवन सुखी बनाता
इसी डाल पर हम सब जायें नव प्रकाश जीवन में लायें। स्वयं सुखी रहकर हम अपने सत्य बनायें मन के सपने। तभी विकास हृदय का होगा अन्त तिमिर के भय का होगा; सात्विकता का वरण करें हम निर्गल जीवन ग्रहण करें हम ! मंजिल तो निर्दिष्ट रही है मुंदी-मुंदी पर दृष्टि रही है;
इसमें ही कल्याण भरा है जीवन का उत्यान भरा है। यहाँ न कोई डर रहता है भार न कोई मन सहता है। जो भी है सब खला-खिला सब को परमानन्द मिला है। जो भी इसमें आ जाता है सुख सौभाग्य सभी पाता है। दिखता है जो कठिन-काटिन-सा कष्ट-साध्य औ क्रूर मलिन-सा; उसमें अद्भुत ज्योति निहित है प्रतिपल अक्षय गोद-भरित है !!