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• जीवन के वारतविक उत्कर्ष के लिए उच्च और उज्ज्वल चारित्र की आवश्यकता है। चारित्र के अभाव में जीवन ___ की संस्कृति अधूरी ही नहीं, शून्य रूप है। • पानहीन क्रिया अन्धी है और क्रियाहीन ज्ञान पंगु है। • भोगों में अतृप्ति है, त्याग में तृप्ति है। भोगों में असन्तोष, ईर्ष्या और कलह के कीटाणु छिपे हुए हैं, त्याग में
सन्तोष की शान्ति है, निराकुलता का अद्भुत आनन्द है, और है आत्मरमण की स्पृहणीयता। • आला की वास्तविक शांति स्थिर होने में ही है। जहाँ तक आत्मा स्थिर न होगा वहाँ तक आत्मा को शांति-लाभ
संभव नहीं है। • एक ओर से मन को अप्रशस्त में जाने से रोको और दूसरी ओर उसे परमात्मा के ध्यान में पिरोते जाओ। ऐसा
करने पर मन वश में किया जा सकेगा। • गनुष्य की महत्ता और हीनता, शिष्टता और अशिष्टता वाणी में तत्काल झलक जाती है। अतएव संस्कारी पुरण ___ को बोलते समय बहुत विवेक रखना चाहिए।
• मुँह से जैसी ध्वनि निकलेगी वैसी ही प्रतिध्वनि सुनने को मिलेगी। अगर कटु शब्द नहीं सुनना चाहते हो तो __अपने मुँह से कटु शब्द मत निकालो। • दूसरे के दोष न देखकर अपने ही दोषों को दूर करने में भलाई है। • जैसे सोना पाने के लिए धूल त्याग देना कठिन नहीं है, उसी प्रकार परमात्मा का वरण करने और सत्य-शील को __स्वीकार करने के लिए तुच्छ विषयभोगों का त्याग करना क्या बड़ी बात है ? • काले कपड़े पर लगा हुआ दाग जल्दी दिखाई नहीं देता। इसी प्रकार जिनका हदय पापों से खूब भरा है. उन
अपने पाप दिखाई नहीं देते। • दाध सम्पत्ति के नष्ट हो जाने पर भी जिसके पास सद्विचार और धर्मभावना की आन्तरिक समृद्धि बची हुई है, वह सौभाग्यशाली है। इसके विपरीत आन्तरिक समृद्धि के न होने पर वाह्य सम्पत्ति का होना दुर्भाग्य का लक्षण
'मन की समाधि से एकाग्रता उत्पन्न होती है, एकाग्रता से ज्ञान-शक्ति उत्पन्न होती है और ज्ञानशक्ति से मिथ्यात्व
का नाश तथा सम्यत्त्व की प्राप्ति होती है। * दस्तु स्वरूप का यधावत् और गहरा चिन्तन न करने से ही वस्तुओं के प्रति राग-द्वेष उत्पन्न होता है। दस्तुओं या स्वरुप वास्तव में इतना उद्वेगजनक है कि उनके स्वरूप की दृढ़ प्रतीति हो जाने के पश्चात् राग-देश का
अवकाश नहीं रहता। • सभी धर्म महान् हैं किन्तु मानव-धर्म उन सब में महान् है। • जहाँ निलोभता है वहाँ निर्भयता है। • मोने, परग हंस की वत्ति स्वीकार करके स्व-पर भेद विज्ञान का आश्रय लेकर अपनी आता केला
घर पर लिया है, उन्हें शारीरिक वेदना विचलित नहीं कर सकती।