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हिंदी पदार्थ - (विगइओ निविगइओ) विगय जो आत्माको विकृतिभाव करनेवाले हैं जैसेकि - दुग्ध, दधि, घृत, नवनीत, गुड़, तैल इत्यादिके प्रत्याख्यानको निविगह कहते हैं सो निविगइका ( पञ्चक्खामि ) प्रत्याख्यान करता हूं तथा वर्तमान कालमें उक्त प्रत्याख्यानका निर्वाह छाछद्वारा किया जाता है। छाछ में रोटी डालकर आसेवन करनेकी प्रथा वर्तमान कालमें है । सो उक्त प्रत्याख्यानमें आगारोंकी सख्या लिखते है - यथा ( सव्व समाहि वत्ति आगारेण ) सर्व प्रकारकी समाधिके होनेपर ( वो सिरामि ) इस प्रकारसे विगयको छोड़ता हू |
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भावार्थ - विगय के प्रत्याख्यानमें पूर्वोक्त तीन आगार होते है | अथ विगयका एकासनयुक्त प्रत्याख्यानका पाठ ॥ उग्गयसूरे निविगइ एकासणं पञ्चक्खामि ति - विहंपि आहारं असणं खाइमं साइमं अन्नत्थणा भोगेणं सदसागरेण सव्व समाहिवत्ति आगारेणं वासिरामि ॥
हिंदी पदार्थ - ( उग्गयसूरे निविगइ पञ्चक्खामि ) सूर्य उदयसे निविगइका प्रत्याख्यान करता हू, फिर ( एकासण ) एक आसनपर अन्नादि भक्षण करनेका ( पच्चक्खामि ) प्रत्याख्यान करता हूं । पुनः ( तिविहपि ) त्रिविधके ( आहारं ) आहारका भी प्रत्याख्यान करता हू जैसेकि - ( असण) अन्नकी जाति ( खाइमं ) खादिमकी जाति ( साइमं ) सादिमकी जाति ( अन्नत्थणा भोगेण ) विना उपयोग (सहसागारेण) अकस्मात् ( सव्व समाहिवत्ति आगारेण ) सर्व प्रकारकी समाधि होनेपर ( वोसिरामि ) तीन आहारका प्रत्याख्यान करता हू ॥ भावार्थ - एकासनयुक्त तीन आहारका निविगइमें प्रत्याख्यान करे, 8 लेवालेवेणवा, गिहत्य ससद्वेण, उक्खित्त विवेगेण, पडुन मक्खिoण, परिठावाणियागारण, महत्तरागारेण ॥
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