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फिर ऐसे पढ़े
खामे मि सव्वे जीवा । सव्वे जीवा खमंतु मे॥ मित्ती मे सव्व भूएसु । वे मज्झं न केणई ॥१॥ एवमहं आलोइयं । निंदियं गरहियं। दुगंच्छियं सम्म तिविहेण पडिकतो वदामि जिण चउव्वीसं ॥२॥
हिंदी पदार्थ-(खामे मि सव्वे जीवा) मै खमावना करता हूं सर्व जीवोंसे और (सव्वे जीवा खमंतु में) हे सर्व जीवो मेरेपर तुम भी क्षमा करो, क्योंकि (मित्ती मे सव्व भूएसु) मैत्री भाव है मेरा सर्व जीवोंमें (वेर मज्मं न केणई) वैरभाव मेरा किसी जीवके साथ भी नहीं है। (एवमहं) इस प्रकार मैने (आलोइयं) आलोचना की (निदियं) आत्मसाक्षिसे निंदा की (गरहिय) गुरु की साक्षिसे विशेष निंदा की (दुगच्छिय) दुर्गच्छा की (सम्म) सम्यक् प्रकारसे (तिविहेणं) तीन योगोंसे (पडिक्कतो) मै पापसे पीछे हटता हू और (वदामि) वंदना करता हूं (जिण चउव्वीस), चतुर्विंशति तीर्थंकरोंको ॥
भावार्थ-सर्व जीवोके साथ क्षमावना करके पापसे सर्वथा ही पीछे हटकर चौवीस तीर्थकरोको वन्दना नमस्कार करे॥ __ इस प्रकार सामायिक, चउविसंथा, वंदना, पडिक्कमणा, यह चार आवश्यक पूर्ण हुए। फिर "निवखुत्तो" के पाठसे पाचवें आवश्यककी आज्ञा लेकर निम्न प्रकारसे कायोत्सर्ग करे
गुणाकार करनेसे ३३७८० भेद होते हैं, अपितु इनको ही तीन करणोंके साथ सयोजन करनेसे १०१३४० भेद पन जाते हैं, अपितु इनको भी फिर तीन फालके साथ गुणाकार करनेसे ३०४०२० मेद हो जाते हैं। फिर इनको अर्हन, सिद्ध, साधु, देव, गुरु, और आत्मा इस प्रकार छै गुणाकार करनेसे १८२४५२० भेद पनते हैं अर्थात् इस प्रकारसे मैं मिच्छा मि दुक्कडं देता हू और फिर पाप कर्म न करने की इच्छा करता हू॥