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વર
तिविदेणं न करेमि न कारवेमि मणसा वयसा कायसा एहवी सदहणा परूपणा करीयें ते वारें फरसनायें करो शुद्ध हवा इग्यारमा पडिपुण्णं पोषध व्रतना पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा तंज्जहा ते आलोउं अप्पडिलेहिय दुप्पडिलेहिय सेज्जा संथारए अप्पमझिए दुप्पमझिए सेज्जा संथारए अप्पडिलेहिय दुप्पडिलेहिय उच्चार पासवण भूमि अप्पमज्झिए दुप्पमझिए उच्चार पासवण भूमि पोसहस्त सम्मं अणणुपालणियाय जो मे देवसि अइयारो कउ तस्स मिच्छामि दुक्कडं ॥
हिंदी पदार्थ - ( इग्यारमुं ) एकादशवां (पडिपुण्णं ) प्रतिपूर्ण अष्टयाम पन्त ( पोषच ) पौषध (व्रत) व्रन उसमें ( असणं ) अन्नादि (पाणं ) जलादि (खाइमं ) खाद्यम पक्कानादि ( साइमं ) स्वाद्यम लवं - गाढ़ि (चार आहारनुं पञ्चक्खाण) उक्त चतुर्, आहारोंका प्रत्याख्यान ( अवंभ सेवननुं पञ्चक्खाण ) अब्रह्मचर्य आसेवनका प्रत्याख्यान अर्थात् ब्रह्मचर्य धारण करना (अमुक) जो आभूषण सुखपूर्वक उतारे नहीं जाते जैसेकि - कणके आभूषण सो उनके विना पौषध व्रत में (मणि ) हीरा वा चंद्रकातादि मणि (सुवर्ण) स्वर्णके आभूषण रक्खनेका प्रत्याख्यान तथा ( माला) पुष्पमाला (वन्नग ) सुगंधयुक्त चूर्णादि और (वि-लेवानुं पञ्चक्खाण ) विलेपन चदन कर्पूर जलादिसे संघर्पण करके मस्त
कादिमें लगाने का प्रत्याख्यान, फिर (सत्य) शस्त्र ( मूसलादिक) मूसलादि वा काष्टादि प्रमुख ( सावज्ज जोगनुं पच्चक्खाण) सावद्य [ पाप ] रूप योगोंका प्रत्याख्यान ( जाव ) यावत् (अहोरत ) दिन और रात्रि पर्य्यन्त