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________________ ७७ .. भावार्थ-आठवें अनर्थदंड विरमण व्रतमें विना प्रयोजन काम केर नेका परित्याग है जिसके करनेसे कमौका महा बंध न हो और कार्य, सिद्धि कुछ भी न हो, जैसे अपध्यान करना, अथवा धृतादिके भाजनोंकी पूरी रक्षा न करनेसे पिपीलिकादि जीवोंकी हिंसा हो जाती है और इस व्रतके भी पांच ही अतिचार-है जैसेकि-कंदर्पकी वार्ता करनी १ कुचेष्टा करना २ विचारसे शून्य होकर भाषण करना ३ अधिकरण (शस्त्रों)का संग्रह करना ४ उपभोग परिभोग पदार्थ प्रमागसे अधिक सेवन करने तथा प्रमाण युक्तमें ही अति मूर्षित होना ५ इन पाचों ही अतिचारोंका परित्याग करके अष्टम व्रतको शुद्ध पालन करे, अनर्थदड कदाचित् भी सेवन न करे ॥ अथ नवम व्रत विषय ॥ नवमुं सामायिक व्रत.सावज्जजोगनुं वेरमणं जाव नियमं पज्जुवासामि दुविहं तिविहेणं न करेमि न कारवेमि मणसा वयसा कायसा एहवा सदहणा परूपणा करिये तिवारे फरसनायें करी शुद्ध एहवा नवमा सामायिक व्रतना पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा तंजहा ते आलोउं मणदुप्पणिहाणे वयदुप्पणिहाणे कायदुप्पणिहाणे सामाइयस्त (सइविहुणे). अकरणियाए सामाइयस्त अणवुठियस्त करणियाए जो मे देवसि अइयारो कउ तस्त मिच्छा मि दुक्कडं ॥ , हिंदी पदार्थ-नवमुं) नवमा ( सामायिक वन), समतारूप भाव
SR No.010524
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherLala Munshiram Jiledar
Publication Year1915
Total Pages101
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aavashyak
File Size4 MB
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