________________
अन्न षष्टम व्रत विषय ॥ हूं दिशिवत उर्ध्व दिशानुं यथा परिमाण अधो विशानुं यथा परिमाण तिरिय दिशानुं यथा परिमाण ए यशा परिमाण कीधुं छे ते उपरांत सइच्छायें कायायें जड़ने पंच आस्त्रव सेववाना पञ्चक्खाण जावजीवाय दुविहं तिविहेणं न करेमि न कारवेमि मणसा वयसा कायसा एहवा छठा दिशि बतना पंच अइयारा जाणियन्वा न समायरियव्वा तंजहा ते आलोडं उदिति पमाणाइकमे अहो दि. सि पमाणाइको तिरिय दिलि पमाणाइक्कमे खित बुद्धि लयंत्तरदाय जो से देवरिल अडयारो कउ तस्त मिच्छामि टुकडं ॥
हिंदी पक्षार्थ (टुं दिशिस) छटा विश्वन जो दिशाओंका परिमाण किया जाना है जो कि- (उर्व दिशानुं यथा परिमाण अधो दिशानुं गया परिमाण) उर्व-ऊंनी दिशाका यावत् [ जितना] परिमाण किया हुआ है, नीची दिशाका यावत परिमाण किया हुआ है (तिरिय दिशान यथा परिमाण) निर्यग दिशाओंका जैसे कि-पूर्व पश्चिम दक्षिण उत्तर दिशाओंका यथा परिमाण (प.यथा परिमाण कीधुं छे) यह यावत् परिमाण किया हुआ है (जे उपरान्त ) परिमाण भूमिकाके विना (सइच्छायें) स्त्र इच्छा करके या (कायायें) शरीर करके (जइने) जा करके (पच) पाच (आत्रव) आसव [ कर्म आनेके मार्ग] (सेववाना) आसेवन करनेका (पञ्चक्खाण) प्रत्याख्यान ( जावजीवाय) यावत् जीव पर्यन्त (दुविह)