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के (पंच अड्यारा) पांच अतिचार (नाणियवा) जानने योग्य हैं किन्तु (न समायरियव्वा) आचरणे योग्य नहीं है (तंज्जहा) तद्यथा (ते आलोउं) उनकी आलोचना करता हूं-जैसेकि (तेनाहडे) चोरीकी वस्तु ली हो (तक्करप्पउग्गे) चोरोंकी सहायता की हो (विरुद्ध रज्जाइक्कन्में) राज्य विरुद्ध काम किया हो क्योंकि जो राज्य नियम [कानून] है उसके विरुद्ध वर्नाव करना तृनीय जनमें अतिचार रूप दोष है, इसलिए राज्य नियमसे यदि विरुद्ध काम किया हो (कड़ तोले) न्यूनाविक तोला हो (कूड़ माणे) वस्त्रादिका माप न्यूनाविक किया हो (तप्पडिरूवगववहारे) अविक मूल्यकी वस्तुमें अल्प मूल्यकी वस्तु एकत्व करके विक्रय करना जैसेकि- . घृनमें चरबी, दुग्धमें जल, इत्यादि (जो) जो (मे) मैने (देवसि) दिनमे (अडयारो) अनिनार (कर) किया है (तस्स) उस (मिच्छा मि दुक्कड़) अतिचारोसे मै पीछे हटता हूं ॥
भावार्थ-तृतीय अनुव्रतमें स्थूल चौर्य कर्मका परित्याग होता है सकि-संधिका छेदन करना १ गांठ कतरना २ परके ताले अन्य कुंजि- । योंसे खोलने ३ किसीकी वस्तु उठा लेनी ४ इत्यादि इस प्रकारके वीर्य कमोंका परित्याग करे । फिर उक्त व्रतकी रक्षाके लिए पांच अतिचार रूप दोपोको भी छोड़ देवे, जैसेकि चोरोंका माल लेना १ चोरोंकी सहायता करनी २ राज्य विरुद्ध कार्य करने ३ न्यूनाधिक तोलना और मापना ४ बहुमूल्य वस्तुमे अल्प मूल्यवाली वस्तुको एकत्व करके बहु मूल्यके भावमे विक्रय करना ५ इन पात्र अनिचारोंको परित्याग करके तृतीय अनुव्रतको हिकरण और तीन योगोंसे शुद्ध पालन करे क्योंकि ये नियम उभय लोकमें सुखदायक है जैसेकि इस लोकमे शान्ति, राज्यसेवा, धर्म- ' रक्षा, परलोकमें आराधक भाव प्राप्त होना अनुक्रमतासे मुक्तिकी प्राप्ति होना एवं अनेक सुखोंकी प्राप्ति होती है।
रक्षा, परलोको अनदायक है जैसेकि पालन करे क्योंकि