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________________ होय जो मे देवसि अइयार कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ॥ ____ अर्थ-चतुर्दश ज्ञानके अतिचार ( १४ ), पांच सम्यक्त्वके, ६० द्वादश व्रतोंके, १५ कर्मादानोंके, ५ पाव सलेखनाके एवं ९९ अतिचारोंके विषय यदि कोई अतिक्रम १ व्यतिक्रम २ अतिचार ३ अनाचार ४ आप दोप सेवन किए हों औरोसे दोप आसेवन करवाये हों जो उक्त दोष आसेवन करते है उनकी अनुमोदना की हो अत जो मैने दिनके विषय इस प्रकारसे अतिचार आसेवन किए हो तो मैं उन दोषोंसे पीछे हटता हू अर्थात् वे मेरे दोष निष्फल हो॥ ___ अठारा पापस्थानक ते आलोऊ प्राणातिपात १ मृषावाद २ अदत्तादान ३ मैथुन ४ परिग्रह ५ क्रोध ६ मान ७ माया ८ लोभ ९ राग १० देष ११ कलह १२ अभ्याख्यान १३ पिसुन्न १४ परपरिवाद १५ रति अरति १६ माया मोसो १७ मिच्छा दसण सल्ल १८ । अठारा पापस्थानक सेव्या होय १ सेवाया होय २ सेवतां प्रति अणुमोद्या होय ३ जो मे देवसि अइयार कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ॥ अर्थ-अब मै अष्टादश पापोंकी आलोचना करता हूं जैसेकि-हिंसा १ झूठ २ चोरी ३ मैथुन ४ परिग्रह ५ क्रोध ६ मान ७ माया ८ लोभ ९ राग १० द्वेष ११ क्लेष १२ असत्य दोषारोपण १३ चुगली करना १४ दूसरोंके अवगुण वर्णन करने १५ विषयादिमे रति और उनके न मिलने पर अरति करना वा दुःख मानना १६ छलसे असत्य बोलना १७ मिथ्या दर्शन शल्य १८ ये अष्टादश पाप सेवन किए हों अथवा औरोंसे आसेवन
SR No.010524
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherLala Munshiram Jiledar
Publication Year1915
Total Pages101
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aavashyak
File Size4 MB
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