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राध साध संसिद्धी, इन धातुओंसे जो नमो लोए सव्वसाहू शब्द बनता है(लोके सर्व साधुभ्य:) लोकमें जितने साधु है अर्थात् लोकमें सर्व साधु
ओंके ताई नमस्कार हो-जो कि सुगुणों करके युक्त है ।। ____ भावार्थ-इस महामन्त्रमें यह वर्णन है कि अनन्त गुणयुक्त चतुघानि कर्म नष्ट कर्ता और जिनके द्वादश गुण प्रगट हुए हैं ऐसे गुणगणालंकन श्री अरिहनजी महाराजोंको नमस्कार हो पुनः जिनके अशरीरी मिद्ध बुद्ध अजर अमर इत्यादि अनेक नाम मुप्रख्यानि संयुक्त मुप्रसिद्ध है जिन्होंके सर्व कर्म भय हो गये है अर्थात् जो कर्मरूपी रजमे विमुक्त हो गये हैं और जिन्होंके अष्ट गुण प्रादुर्भून हुए हैं इत्यादि अनेक सुगुणों सहित श्री सिद्ध महाराजोंको नमस्कार हो, अपितु जो पत्रिंशत् गुणोंसे युक्त मर्यादासे क्रिया करनेवाले जिनकी जानमें गति अधिक है तथा जो सम्यक् प्रकारले गच्छ ( साधु समुदाय) की सारणा (रक्षा करना) वारणा (स्थिलाचार होतको सावधान करना) साधमण्डलको हितशिना दना तथा वस्त्रपात्रादि द्वारा भी मुनियोंको सहायता देनी वा परम्पराय शुद्ध शास्त्रार्य पठन कराना अपितु यदि कोई दुर्बल अर्थात् जंबावल क्षीण रोगादि युक्त साधु हों उनको यथायोग्य सहायता करना इत्यादि अनेक गुणों से युक्त हैं और उक्त वार्ताओंके पूर्ण करनेमें सदैव कटिबद्ध हैं ऐसे श्री आचार्यजी महारानको नमस्कार हो, अपिच जो पंचविंशति गुणों से अलंकत हो रहे है अर्थात् जो एकादश अंग तथा द्वादश उपांगको स्वयम् पढ़ने है औरोंको पढ़ाते है-जिन शास्त्रोंके नाम ये है.संख्या. अयांगमूत्राणि. । संख्या. अयोपांगसूत्राणि. (१) आचारांग
(१) उव्वाइ. (२) सूयगजग.
(२) रायप्रश्रेणी. (३) टाणांग
(३) जीवाभिगम. (४) समवावाग.
(४) पण्णवन्ना.