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धम्म संतिं च वंदामि ॥३॥ कुंथु अरंच मल्लिं वंदे मुणिसुव्वयं नमिजिणं च वंदामि अरिहनेमि पासं तह वद्धमाणं च ॥ ४॥ एवं मए अभित्थुआ विहुय रयमला पहीण जरमरणा चउवोसंपि जिणवरा तित्थयरा मे पसीयंतु ॥५॥ कित्तिय वंदिय महिया जे ए लोगस्त उत्तमा सिद्धा आरोग्ग बोहिलाभं समाहिवर मुत्तमदितु ॥६॥ चंदेसु निम्मलयरा आइच्चेसु अहियं पयास. यरा सागरवर गंभीरा सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ॥७॥
हिंदी पदार्थ-(लोगस्स) लोकके विषय (उज्जोयगरे) उद्योत करनेवाले और (धम्मतित्थयरे) धर्म रूपी तीर्थके स्थापन करनेवाले पुनः (जिणे) रागद्वेपके जयकर्ता (अरिहते) ऐसे जो श्री अरिहत है ( कित्तइस्स) तिनकी कीर्ति करता हू ( चउवीसपि) और ऋषभादि चतुर्विंशति तीर्थकरोंके नाम लेकर स्तुति करता हू । अपि शब्दसे अन्य जिनेन्द्रोंका भी ग्रहण करना । पुनः २४ तीर्थकर कैसे है ( केवली ) केवल ज्ञानके धारक हैं ।।१।। अथ चतुर्विंशति तीर्थकरनामानि । (उसभ) ऋषभदेवजीको (अनिय) (च) पुनः अजितनाथजीको (वदे) वंदना करता हू ( सभवं ) सभवनाथजीको (अभिणदणं ) अभिनदननाथनोको (च) और (सुमइ) सुमतिनाथनोको (च) पुन' (पउमप्पहं) श्री पद्मप्रभुस्वामीजीको (सुपासं) श्री सुपार्ननाथजीको (जिण ) रागद्वेषके जीतनेवाले (च) और (चदप्पह) चंद्रप्रभुजीको (वदे) वदना करता हू ॥ २॥ (सुविहिं ) सुविधिनाथनीको (च) पुन. इनका द्वितीय नाम (पुष्पदंत ) पुष्पदतनीको (सीयल) शीतलनाथनीको (सिज्नंस) श्रेयासनाथनीको (वासुपुज्न) वासुपूज्य स्वामीजीको (च) ओर (विमल) विमलनाथनीको (अणतं ) अनननाथनीको (च) और (निण) रागद्वेपके जीतनेवाले (धम्म) धर्मनाथनीको (च)