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श्री तत्त्वार्थसूत्र भाग दूसरे की विषयानुक्रमणिका
विषय छट्ठा अध्याय १ आस्रवतत्त्वका निरूपण सू० १
१-११ २ पुण्यपाप के आसत्रों के कारण सू० २
१५-२० ३ संपरायक्रिया के आसवों का निरूपण सू०३
२०-२१ ४ अपायजीव के संसार परिभ्रमण रूप ईर्यापथ आस्रव के कारण होने का निरूपण सू० ४
२५-३१ ५ साम्परायिक कर्मास्रव के भेदों का निरूपण सं०५ ६ सब जीवों के कर्मबन्ध समान होता है या विशेषाधिक सू० ६ ५२-६९ " ७ अधिकरणका स्वरूप सू०७
६९-७५ ८ जीवाधिकरण के भेदका निरूपण मू० ८
७६-८७ ९ अजीव के अधिकरणका निरूपण सू० ९
८७-९८ १० कर्मवन्ध के आस्रव सब आयुवालेका अस्रव होता है सू० १० ९८-१०० ११ देवायु के आसवका निरूपण सू० ११
सातवां अध्याय १२ संवर के स्वरूपका निरूपण सू० १
१०४-१०७ १३ संवर के कारणरूप समिति गुप्ति आदिका निरूपण मू० २ १०७-११५ १४ समिति के भेदों का निरूपण सू० ३
११६-१२४ १५ गुप्ति के स्वरूप निरूपण ० ४
१२४-१३२ १६ दश प्रकार के श्रमणधर्मका निरूपण सू० ५
१३२-१४८ १७ अनुपेक्षा के स्वरूपका निरूपण मू०६
१४८-१७९ १८ परिषहजय का निरूपण स० ७
१७९-१८५ १९ परीषह के भेदों का निरूपण सू०८
१८४-२१५ २० कौन जीवको कितने परीषह होते है ? मू० ९
२१४-२२१ २१ भगवान् अरिहन्त भगवन्त को बारह परीषह होनेका निरूपण सू० १०
२२१-२२५ २२ वादरसम्पराय को सब परीषहका संमत्र का निरूपण सू०११ २२५-२२. २३ ज्ञानावरण कर्म के निमित्त से होने वाले दो परिपहों का निरूपण सू० १२
२३०-२३९