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________________ दीपिका-नियुक्ति टीका अ.८. सू.२६ अनत्याशातनाया.४५ भेद निरूपणम् ६८१ इति व्युत्पत्तेः । अन्यत् सर्व स्रष्टम् ॥ उक्तश्चौपपातिके ३० सूत्रे-"से कि तं अपच्चासायणाक्षिणए-? अणच्चासायणाविणए पणयालीसविहे पण्णत्ते, तं जहा--अरहताणं अणच्चालारणया-१ अरहलपण्णत्त. रस धम्मल भणच्चालायणया-२ आयरियाणं अणच्चासाचगया-३ एवम्-उपज्झागणं-४ थेशणं-५ झुलरला-६ गणस्स -७ संघ सस-८ किरियाण-९ संयोग-१० आभिणियोहियणाणल-११ सुयणाणेस १२ मोहिणाणल १३ मणपज्जधणाणल-१४ फेशलणाणस्स१५एएलि देव सहिपहुला-३०, एएलि चेव घाणसंजलणया-४५, से तं अणनालायणाक्षिणए" इति । अथ कोऽसौ-अनत्याशालनाविनय ? अनत्याशातलाविनयः पञ्चचत्वारिंशदधिः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-ऽहंतामनत्याशात. नता १ अर्हत्यज्ञप्तस्य धर्मस्याऽनत्यासातनता २ आचार्याणामनत्याशातिमसा ३ एव-पाध्यायानास् ४ स्थविशणाम् ५ कुलस्य ६ गणश्य ७ संघस्य ८ क्रियाणाम् ९ सम्भोगस्य १० आमिनियोपिकज्ञानस्य ११ श्रुतज्ञानस्य १२ अवधि का पारस्परिक आहार आदि व्यव्हार अर्थात् आपल्या में उपधि आदि को लेना-देना एक साथ बैठकर भोजन करना पयोचित बन्दन आदि करना । अन्य लब पा ही है। औपपातिकलून के ३०३ खून में कहा है प्रश्न-अलत्याशासनाधिनय कितने प्रकार के हैं ? उत्तर-अलल्याशातलाविनय पैंतालीम प्रकार का है, यथा-(१) अर्हन्तों की आशालना न करना (२) अप्रणीत धर्म की आशातना न करना (३) आचार्यों की आशीतना न करना (४) उपाध्यायों की आशालना न पारना (५) स्थघिरों की (६) कुल की (७) गण की (८) संघ की (२) निधाओंकी (१०) खांभोगिकों की (११) आभिनिबोधिकज्ञान को (१२) श्रुतज्ञान की (१३) अवधिज्ञान की (१४) પ્રાય છે સમાન સમાચારવાળા શ્રમને પારપરિક આહાર આદિ વ્યવહાર અર્થાત્ અંદર અંદર ઉપધિ વગેરેની લેવડદેવડ, એક સાથે બેસીને ભેજન કરવું, યચિત વંદણું વગેરે કરવી. બીજું બધું સ્પષ્ટ જ છે. ઔપપાતિક સૂત્રને ૩૦માં સૂત્રમાં કહ્યું છે– પ્રશન–અનત્યશાતનાવિનય કેટલા પ્રકાર છે? उत्तर--मनत्याशतनाविनय पिस्ताजश. प्रारना छ भ3-(१) અર્હતેની આશાતના ન કરવી (૨) અહપ્રણીત ધર્મની આશાતના ન કરવી (૩) આચાર્યોની આશાતના ન કરવી () ઉપાધ્યાયની આશાતના ન કરવી (५) स्थविशनी (6) सुनी (७) गनी (c) धनी () याभानी (१०) सम्मानिनी (११) मामिनिमोविज्ञाननी (१.२) श्रुतज्ञाननी (१3) मधि त० ८६
SR No.010523
Book TitleTattvartha Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size73 MB
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