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दीपिका-नियुक्ति टीका अ. ७ स्लू. ४५ पञ्चमस्थाणुव्रतस्य पञ्चातिचारनि०- ३३९--- पञ्चातिचारा आत्मनो मालिन्यकारका दुष्परिणतिविशेपा भवन्ति । तत्रक्षेत्रं सस्योत्पत्ति भूमिः १ वास्तु-आवासगृहम् १ हिरण्यरूप्यादि व्यवहारहेतुभूतरजतादि धातुविशेषः, सुवर्ण-काञ्चनम् २ धनं गौमहिपहत्यश्वादि, धान्यं, शालिव्रीह्यादि-३ द्विपदो दासीदासादिकम् चतुष्पदो गोमहिष्यादिका ४ कुप्यम्ताम्रलोहकांस्यसीसकादि ५ क्षेत्रञ्च वास्तु वेति क्षेत्रवास्तु, धनश्च धान्यञ्चेति धनधान्यम्, हिरगयञ्च सुवर्णञ्चेति हिरण्यसुवर्णम्, द्विपदश्च चतुष्पदश्चेति द्विपदचतुष्पदम्, एतेपाञ्च-क्षेत्रवास्तु धनधान्यहिरण्यसुवर्णद्विषदचतुष्पद कुष्यानाम् कुप्यप्रमाणालिक्रम । ये अतिचार आत्मा मलीनमा उत्पन्न करने वाले दुष्परिणाम हैं। इनका स्वरूप इस प्रकार है-(१) क्षेत्र अर्थात् खेत जहां धान्य की उपज होती है, वास्तु आर्थात् निवास करने का मकान अभिप्राय यह है कि खुली भूमि क्षेत्र कहलाती है और आच्छादित भूमि को वास्तु कहते हैं।।
(२) चांदी भादि धातुएं, जिनसे लेने-देने का व्यवहार होता है, हिरण्य कहलाती हैं और स्वर्ण का अर्थ कंचन है, जिसे लोना कहते हैं।
(३) गाय, भैल, हाथी, अश्व आदि धन कहलाता है और शालि. व्रीहि अर्थात् चावल आदि को धान्य कहते हैं।
(४) दासी दास आदि को द्विपद तथा गाय भैंस आदि को चतुष्पद कहते हैं।
(५) तांबा, लोहा, कांसा, शीशा आदि कुपण कहलाता है। इन क्षेत्र, वास्तु, हिरण्य, स्वर्ण, धन, धान्य द्विपद, चतुम्पद और अपच के प्रमाण का अत्यन्त लोभ के वशीभूत होकर उल्लंघन करना पांचवें તિક્રમ આ અતિચાર ભામાં મલીનતા ઉત્પન્ન કરવાવાળા દુષ્પરિણામ છે. એમનું સ્વરૂપ આ પ્રકારે છે-(૧) ક્ષેત્ર અર્થાત્ ખેતર જ્યાં ધાન્યની ઉપજ થાય છે, વસ્તુ અર્થાત નિવાસ કરવાનું મકાન આશય એ છે કે ઉઘાડી જમીન ખેતર કહેવાય છે અને બાંધેલી જમીનને વસ્તુ કહે છે.
(२) यही वगैरे धातुमा, नाथी -हेपने व्यवहार थाय छ; હિરણ્ય કહેવાય છે અને સુવર્ણ અર્થ કંચન છે, જેને સોનું કહે છે.
(3) गाय, मेस, हाथी, घोडा वगेरे धन वाय छ भने डांगर ત્રીહિ અર્થાત ચેખા વગેરેને ધાન્ય કહે છે.
(४) हासी, हास वगैरेने द्विप तथा गाय समाहिन-यतु०५६ छ.
(५) is, बाटु, सु वगेरे सुपय ४२वाय छे. या क्षेत्र, वास्तु, હિરણ્ય, સુવર્ણ, ધન, ધાન્ય, દ્રિપદ, ચતુષ્પદ અને કુષ્યના પ્રમાણના