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निर्ग्रन्थ प्रवचन पर सम्मतियां
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'दिगम्बर जैन' सूरत वर्ष २६ अङ्क १२ वीर सं० २४५६ पृष्ट ३६१
जैनों को ही नहीं किंतु मानव मात्र के लिए हितकारी है । पुस्तक की नीति पूर्ण गाथाएँ संग्रह करने योग्य हैं । पुस्तक संग्रहणीय व उपयोगी है ।
(५६) "जैन मित्र' सूरत ता० १६ -- ११ -. ३३ में लिखता है ।
कुल गाथाएँ ३७७ हैं । वे सब कएठ करने योग्य हैं । दिगम्बरी भाई भी अवश्य पढ़ें।
(५७) "जैन जगत्" अजमेर अक्टूम्बर सन् ३३ के अंक में लिखता हैजैन सूत्र ग्रन्थों के नीति पूर्ण उपदेश प्रद पथों का यह सुन्दर संग्रह है।
. . (५८) ... 'वीर' मल्हीपुर ता० १६ .. ११ -- ३३ में लिखता है-- .
संग्रह परिश्रम पूर्वक किया गया है श्वे० पाठशालाओं के पाठ्यक्रम में रखने योग्य है।
(.५६) "अर्जुन" देहली ता० ६.- ११ -- ३३ में लिखता है
जैन धर्म सम्बन्धी पाठ्य ग्रन्थों में इस पुस्तक का स्थान ऊंचा समझा जावेगा।
(६०) "वैक्टश्वर समाचार" बम्बई ता० १५ - १२ .. ३३ में लिखता है.
यह एक सम्मादराय ग्रन्थ है ज्ञानामृत की प्यास रखने वाले सभी महानुभाव इस से लाभ उठा सकते हैं। .
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"कर्मवीर" संख्या ५० ता० १७ मार्च १९३४ में लिखता है
भक्ति ज्ञान वैराग्यमय गीता के समान इस पुस्तक को उपदेश ग्रन्थ का रूप देने के लिए संग्राहक महोदय प्रशंसा के पात्र हैं। .